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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवसंपज्जित्ताणं सकजं तमहं आराहेज्जा ?, गोयमा ! णं चउव्विहं आलोयणं विंदा, तंजहा नामालोयणं ठवणालोयणं दव्वालोयणं भावालोयणं, एते चउरोऽवि पए अणेगहावि चग्धा जोइज्जंति, तत्थ ताव समासेण णामालोयणं नाममेत्तेणं, ठवणालोयणं पोत्थयाइसुमालिहियं, दव्वालोयणं नाम जं आलोएत्ताणं असढभावत्ताए जहोवइट्ठ पायच्छित्तं नाणुचिट्टे, एते तओऽवि पए एगंतेणं गोयमा ! अपसत्थे, जे गं से चउत्थं भावालोयणं नाम ते णं तु गोयमा ! आलोएत्ताणं निंदित्ताणं गरहित्ताणं पायच्छित्तमणुचरित्ताणं | जाव णं आयहियट्ठाए उवसंपजित्ताणं सकज्जुत्तममहं आराहेजा, से भयवं! कयरे णं से चउत्थे पए ?, गोयमा ! भावालोयणं, से | भयवं ! किं तं भावालोयणं?, गोयमा! जे णं भिक्खू एरिसे संवेगवेरग्गगए सीलतवदाणभावणचउखंधसुसमणधम्ममाराहणेक्कंतर सिए मयभयगारवादीहिं अच्यंतविष्यमुक्के सव्वभावभावंतरेहिं णं नीसल्ले आलोइत्ताणं विसोहिपयं पडिगाहित्ताणं तहत्ति समणुट्ठीया सव्वुत्तमं संजमकिरियं समणुपालिज्जा | २० | तंजहा 'कयाई पावाई ईसाहिं, जे हिअट्ठी ण बज्झए । तेसिं तित्थयरवयणेहिं, सुद्धी | अम्हाण कीरओ ॥ ६ ॥ परिचिच्चाणं तयं कम्मं, घोरसंसारदुक्खदं । मणोवयकायकिरियाहिं, सीलभारं घरेमिऽहं ॥७ ॥ जह जाणइ सव्वन्नू, केवली तित्थंकरे | आयरिए चारितड्ढे, उवज्झायसुसाहुणो ॥८ ॥ जह पंच लोयपाले य, सत्ता धम्मे य जाणते। तहाऽऽलोएमिऽहं सव्वं, तिलभित्तंपि न निण्हवं ॥९ ॥ तत्थेव जं पायच्छित्तं गिरिवरगुरुयंपि आवए । तमणुच्चरेमि दे सुद्धि, जह पावे झत्ति विलिज्जए ॥ ३० ॥ मरिऊणं नरयतिरिएसुं, कुंभीपासु कत्थई । कत्थइ करवत्तजंतेहिं, कत्थइ भिन्नो उ सूलिए ॥१ ॥ घंसणं घोलणं ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १८८ For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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