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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुटु विचिंतिरे। हाहा दुटु भागिरे साहू, हाहा दुठ्ठ मणुमते ॥६॥ संवेगालोयगे तहय, भावालोयणकेवली। पयखेवकेवली चेव, मुहणंतगकेवली तहा॥७॥ पच्छित्तकेवली सम्म, महावेग्गकेवली। आलोयणाकेवली तहय, हाऽहं पावित्ति केवली ॥८॥ उम्मुत्तुभ्मग्गपनवए हाहा अणयारकेवली। सावज न करेमित्ति, अक्खंडियसीलकेवली ॥९॥ तवसंजयमवयसंरक्खे, निंदणे गरिहणे तहा। सव्वतो सीलसंरक्खे, कोडीपच्छित्तएऽविय॥७०॥ निप्परिकम्मे अकंडूयणे, अणिभिसच्छी य केवली। एगपासित्त दो पहरे, तह मूणव्वयकेवली ॥१॥न सक्को काउ सामनं, अणसणे ठामि केवली नवकारकेवली तहय, तिव्वालोयणकेवली ॥२॥ निस्सलकेवली तहय, सालुद्धरणकेवली। धनोभित्ति संपुने, सताहंपी किन केवली ॥३॥ ससलोऽहं न पारेमि, चलकट्ठपयकेवली। पक्खसुद्धाभिहाणे य, चाउम्मासी य केवली ॥४॥ संवच्छरमहपच्छित्ते, हा चलं जीवियं तहा। अणिच्चे खणविद्धंसी, मणुयत्ते केवली तहा॥५॥ आलोयनिंदवंदियए, घोरपच्छित्तदुक्करे। लक्खोवसम्गपच्छित्ते, समहियासणकेवली ॥६॥ हत्थोसरणनिवासे य, अद्धकवलासिकेवली एगसित्थगपच्छिते, दसवासे केवली तहा॥७॥ पच्छित्ताढवगेचेव, पच्छित्तद्धयकेवली। पच्छित्तपरिसभत्ती य, अट्ठसक्कोसकेवली॥८॥ न सुद्धीवि न पच्छित्ता, ता र खिष्यकेवली। एगं काऊण पच्छित्तं, बीयं न भवे (जहेव) केवली ॥९॥ तं चायरामि पच्छित्तं, जेणागच्छइ केवली। तं चायरामि जेण तवं, सफल होइ केवली ॥८०॥ किं पच्छित्तं चरंतोऽहं. चिटुं णो तव केवली। जिणाणमाणं ण लंधेऽहं, पाणपरिच्च्यणकेवली॥१॥ अन्नं होही सरीरं मे, नो ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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