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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सविड्ढीए, काउं सत्थामे गया॥१॥ अहो लावत्र कंती, दित्ती रूवं अणोवमी जिणाणं जारिस पायअंगुढग्गं ण तं इह ॥२॥ सव्वेसु देवलोगेसु, सव्वदेवाण मेलिगकोडाकोडिगुणं काउं, जइवि उण्हालिजए॥३॥अह जे अमरपरिग्गहिया, नाणत्तयसमनिया। कलाकलावनिलया, जणमणाणंदकारया॥४॥सयणबंधवपरियारा, देवदाणवपूइया। पणइयणपूरियासा, भुवणुत्तमसुहालया५॥ भोगिस्सरियं रायसिरिं, गोयमा! तं तवजियो जा दियहा केई भुंजंति, ताव ओहीए जाणि॥६॥ खणभंगुरं अहो एयं, लच्छी पावविवड्ढणी। ता जाणंतावि किं अम्हे, चारित्तं नाणुचिट्ठिमो?॥७॥ जावेरिस मणपरिणाम, ताव लोगंतिगा सुरा। मुणि भणति जगज्जीवहिययं तित्थं पवत्तिहा॥८॥ ताहे वोसट्टचत्तदेहा, विहवं सव्व जगुत्तमोगोयमा! तणमिव परिचिच्चा, ज इंदाणवि दुल्लहं ॥९॥ नीसंगा उग्गं कटुं, घोरं अइदुक्करं तवी भुयणस्सवि उकटुं, समुपायं चरति ते॥३३०॥जे पुण खरहरफुदृसिरे, एगजम्मसुहेसिणो। तेसिं दुललियाणंपि, सुटुवि नो हियइच्छिय॥१॥ गोयम! महुबिंदुस्सेव, जावइयं तावइयं सुहं। मरणंतेवी न संपजे, कयर दुललियत्तणं?॥२॥ अहवा गोयम! पच्चक्खं, पेच्छय जारिसयं नरा। दुललियं सुहम्णुहंति, जं निसुणिजा न कोइवी ॥३॥ केई कारेंति मासलिं, हालियगोवालत्तणी दासत्तं तह पेसत्तं, गोडतं सिप्पे बहु॥४॥ ओलग्गं किसिवाणिज, पाणच्चायकिलेसिया दालिद्दविहवत्तणं केई, कम्मं काउण घराघरि॥५॥ अत्ताणं विगोवे, दिणिनिणिते अ हिंडिङी नगुग्घाडकिलेसेणं, जो समजति परिह( हिरणं॥६॥ जरजुन्नफुट्टसयछिदं, लद्धं कहकहवि ओढणी जा अजा कलिं करिमो, पढें ता तमवि परिह( पहिरणं॥७॥ ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ | १५८ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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