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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |सील खंडेई सा णेइ, कहं जणणीए मे इम? ॥४॥ ता जंण णिवडई वज, पंसुविट्ठी ममोवरिश सयसकर ण फुट्टइ वा, हिययं तं महच्छेरंग॥५॥णवरं जइ मेयमालोयं, ता लोगा एत्थ चिंतिही। जहाऽमुगस्स धूयाए, एयंभणसा अवसिय ६॥ तं नं तहवि पओगेणं, परववएसेणालोइमो। जहा जइ कोइ एयमझवसे, पच्छित्तं तस्स होइ किं?॥७॥ तं चिय सोऊण काहामि, तवेणं तत्थ कारणी जं पुण भयवयाऽऽइटुं, घोरमच्चंतनिठुरं॥८॥ तं सव्वं सीलचारितं, तारिसं जाव नो कयो तिविहंतिविहेण णीसलं, ताव पावेणखीयए॥९॥अहसा परववएसेणं, आलोएत्ता तवं चरेपायच्छित्तनिमित्तेणं, पन्नासं संवच्छरे॥२५०॥छट्ठमदसम्दुवालसेहिं, लयाहिं णेइ दस वरिसे। अकयमकारियसंकप्पिएहिं, परिभूय( भुज )भिक्खलद्धेहिं॥१॥ चणगेहिं दुत्रिवि भुजिएहिं सोलस मासखमणेहि। वीसं आयामायंबिलेहिं, आवस्सगं अछड्डेती ॥२॥ चरई य अदीणमणसा, अह सा पच्छित्तनिमित्ती ताहे य गोयमा! चिंते, जं पच्छित्ते कयं तवं॥३॥ ता किं तमेव ण क(ग)यं मे, जं मणसा अवसियं तया?। इयरहेवि 3 पच्छित्तं, इयरहेव | 3 मे क्यं॥४॥ ता किं तत्र समायरियं चिंतेती निहणं गया। उग्गं कटुं तवं घोरं, दुक्करपि चरित्तु सा॥५॥ सच्छंदपायच्छित्तेणं, सकलुसपरिणामदोसओ।कुत्थियकम्मा समुप्पन्ना, वेसाए परिचेडिया॥६॥खंडोहाणाम चडुगारी, मझखडहडगवाहिया विणीया सव्ववेसाणं, थेरीए य चउग्गुणं॥७॥लावन्नतिकलियावि, बोडा जाया तहाविसा अन्नया थेरी चिंतेइ, मझं बोडाए जारिसं॥८॥ लावन कंती रूवं, नत्थि भुवणेवि तारिसी ता विरंगामि एईए, कने णकं सहोट्टयं॥९॥ एसा 3 " जाव विउथ्य( जु)जे, मम ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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