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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिभणियं तीए महापावकमाए भग्गलक्खणजम्माए रज्जज्जियाए, जहा एएणं फासुगपाणगेण आविजमाणेणं विराटुं मे सरीरगति, जावेयं पलवे ताव णं संखुहियं हिययं गोयमा सव्वसंजईसमूहस्स, जहा णं विवजामो फासुगपाणगंति, तओ एगाए तत्थ चिंतियं संजईए जहा णं जइ संपयं चेव ममेयं सरीरगं एगनिमिसब्भंतरेणेव पडिसडिऊणं खंडखंडेहिं परिसडेजा तहावि अफासुगोदगं इत्थं जंभे ण परिभुंजामि, फासुगोदगं न परिहरामि, अनंचकिं सच्चमेयं फासुगोदगेणं इमीए सरीरगं विणटुं?, सव्वहा ण सच्चमेयं, जओ णं पुव्वक्यअसुहपावकम्भोदएणं सव्वमेवंविहं हवइत्ति सुठ्ठयरं चिंति पयत्ता, जहा णं भो पेच्छ २ अनाणदोसोवहयाए दढमूढहिययाए विगतलजाए इमीए महापावकम्माए संसारघोरदुक्खदायगं केरिसं दुहवयणं गिराइयं?, जं मम कनविवरेसुपि णो पविसेज्जत्ति, जओ भवंतरकएणं असुहपावकम्मोदएणं जंकिंचि दारिद्ददुक्खदोहग्गअयसब्भक्खाणकुट्ठाइवाहिकिलेससन्निवायं देहमि संभवइ, न अन्नहत्ति, जेणं तु एरिसमागमे पढिज्जइ, तंजहा को देइ कस्स देज्जइ विहियं को हरइ हीरए कस्स?। सयमप्पणो विढतं अल्लियइ दुहपि सुक्खंपि॥२०५॥ चिंतमाणीए चेव उम्पन्नं केवलनाणं, कया य देवेहिं केवलिमहिमा, केवलिणावि णरसुरासुराणं पणासियं संसयतभपडलं अज्जियाणंच, तओ वत्तिरनिब्भराए पणामपुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए, जहा भयवं! किमहं एमहंताणं महावाहिवेयणाणं भायण संवुत्ता?, ताहे गोयमा! सजलजलहरसुदुंदुहिनिग्योसमणोहारिगंभीरसरेणं भणियं केवलिणा जहा सुणसु दुक्करकारिए! जं तुझ सरीरविहडणकारणंति, तए रत्तपित्तदूसिए अब्भंतरओ सरीरंगे सिणिद्धाहारमाकंठगए ॥ श्री महानिशीथसूत्रं ॥ | १४८ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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