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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे भिक्खू पडिग्गहं किणइ किणावेइ कीयं आहटु देजमाणं पडिग्गाहेइ पडि० सा०१० पामिच्चेइ पामिच्चावेई | पामिच्चियं०२० परियट्टेइ परियडावेइ परियट्टियं०३० अच्छेज अनिसि अभिहडं० ५१।। जे भिक्खू अइरेगं पडिग्गहगं गणिं उद्दिसिय गणिं समुद्दिसिय तं गणिं अणापुच्छिय अणामन्तिय अनमनस्स वियरइ वियरतं वा सा०५० खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा थेरगस्स वा थेरियाए वा अहत्थच्छिन्नस्स अपायच्छिन्नस्स अनासच्छिन्नस्स अण्ण च्छिन्नस्स अणोच्छिन्नस्स सकस्स देइ देंतं वा सा॥६० खुड्डगस्स वा जाव थेरियाए वा हत्थच्छिन्नस्स० ओढ़च्छिन्नस्स अक्स्स न देइ न देंतं वा सा० '१५३७१ जे भिक्खू पडिग्गहं अणलं अथिरं अधुवं अधारणिज धरेइ प्रेतं वा सा०८० अलं थिरं धुवं धारणिज्जं न धरेइ न तं वा सा० १५९१९ जे भिक्खू वण्णमन्तं पडिग्गहं विवण्णं करेइ करेंतं वा सा०।१०। विवण्णं पडिग्गहं वण्णमन्त०११॥ जे भिक्खू 'नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे तिकटु तेल्लेण वा घएण वा नवीएण वा वसाए वा मक्खेज वा भिलिंगेज्ज वा मक्खतं वा भिलिंगंतं वा सा०१२० लोद्धेण वा कक्केण वा चुण्णेण वा वण्णेण वा उल्लोलेज वा उव्वले हे )ज्ज वा उल्लोलंतं वा उव्वलं होतं वा सा०११३८० सीओदगवियडेण वा जाव उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा०॥१४० बहुदेवसिएण तेल्लेण वा० लोद्धेण वा० सीओदगवियडेण जाव सा०१५-१७ जे णवए में पडिग्गहे इतिकटु एवं दो गमा भाणियव्वा ॥ जे० सुब्भिगंधे पडिग्गहे लद्धे इतिकटु० बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा जाव सा०१८-२३ जे नो नवए ॥ श्री निशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021036
Book TitleAgam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages55
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size8 MB
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