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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra परिणामजोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता । इहलोए परलोए जीवियमरणासए चेव ॥ ९ ॥ संसारबंधणाणि य रागद्दोसनियलाणि छित्तूणी सम्मदंसणसुनिसियसुतिक्खधिइमंडलग्गेणं ॥ ३० ॥ दुष्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चैव गारव विमुक्का। कार्य मणं च वायं मणवयसा कायसा चैव ॥ १ ॥ तवपरसुणा य छित्तूण तिष्णि उजुखंतिविहियनिसिएण । दुग्गइमग्गा नरएण मणवयसाकायए दंडे ॥ २ ॥ तं नाऊण कसाए चउरो पंचहि य पंच हन्तूणी पंचासवे उदिण्णे पंचहि य महव्वयगुणेहिं ॥ ३ ॥ छज्जीवनिकाए रक्खऊण छलदो सवज्जिया जइणो । तिगलेसापरिहीणा पच्छिमलेसातिगजुआ य ॥ ४ ॥ एक्कगदुगतिगचउपणसत्तद्रुगनक्दसगठाणेसु । असुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सइ संठिया जे ॥ ५ ॥ वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्टाए। तह पाणवत्तियाए छट्टं पुण धम्मचिंताए ॥ ६ ॥ छसु ठाणेसु इमेसु य अण्णयरे कारणे समुप्पणे । कडजोगी आहारं करंति जयणानिमित्तं तु ॥ ७॥ जोएस किलायंता सरीरसंकष्पचेद्वमचयंता। अविकप्पवज्जभीरू उविंति अब्भुज्जयं मरणं ॥ ८ ॥ आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहे सरीरपरिहार वुच्छेयो ॥ ९ ॥ पडिमासु सीह निक्कीलियासु घोरे अ(सुङ ) भिग्गहाईसु । छच्चिय अब्भिंतरए बज्झे अ तवे समणुरता ॥ ४० ॥ |अविकलसीलायारा पडिवन्ना जे उ उत्तमं अट्ठ। पुव्विल्लाण इमाण य भणिआ आराहणा चेव ॥१॥ जह पुव्वद्धअगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोओ। तीरासनं पावइ रहिओऽवि अवल्लगाईहिं ॥ २ ॥ तह सुकरणो महेसी तिकरण आराहओ धुवं होइ । अह लहइ उत्तम तं | अइलाभत्तणं जाणं ॥ ३ ॥ एस समासो भणिओ परिणामवसेण सुविहियजणस्स । इत्तो जह करणिज्जं पंडियमरणं तहा सुणह ॥ ४ ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्री मरणसमाधि सूत्रं ॥ www. kobatirth.org ३ For Private And Personal Use Only
SR No.021035
Book TitleAgam 33 Prakirnaka 10 Maran Samadhi Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages57
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_maransamadhi
File Size8 MB
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