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सिढिलेसुऽबलेसुयोसव्वजाणिवजिज्जा, अप्पसाहरणं करे॥७॥५सत्थेसु निभित्तेसु, पसत्थाणिसयाऽऽरभे।अप्पसत्थनिमित्तेसु, सव्वजाणिवज्जए॥८॥दिवसाओ तिही बलिओ तिहीउ बलियं तु सुव्वई रिक्खी नक्खत्ता करणमासुकरणाउ गहदिणा बलिणो ॥ ९॥ गहदिणाओ मुहत्ता मुहुत्ता सउणो वली। सउणाओ बलवं लागं, तओ निमित्तं पहाणं तु ॥ ८०॥ विलगाओ निमित्ताओ, निमित्तबलमुत्तमं । न तं संविजए लोए, निमित्ता जं बलं भवे ॥ १॥ एसो बलाबलविही समासओ कित्तिओ सुविहिएहिं । अणुओगनाणगेझो नायव्वो अप्पमत्तेहिं ॥८२॥२०-९२८॥ गणिविजापइण्णं समत्तं ८ ॥ प्रभु महावीर स्वामीनीपट्ट परंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा- चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्यपू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासकसैलाना नरेश प्रतिबोधक-देवसूर तपागच्छ-समाचारी संरक्षक-आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्य देवेश श्री आनंदसागर सूरीश्वरजीमहाराजा शिष्य प्रौढ़ प्रतापी, सिध्धचक्रआराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म.सा. शिष्य चारित्रचूडामणी, हास्यविजेता-मालवोध्धारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगमविशारद-नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री अभयसागरजी म.सा. शिष्य शासन प्रभावक-नीडर वक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्तिरसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघु गुरु भ्राता प्रवचन प्रभावक पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागर सू.म. शिष्य पू. गणिवर्य श्री पूर्णचन्द्र सागरजी म.सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं.२०५८/५९/६० वर्ष दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी ॥ श्री गणिविझा सूत्र ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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