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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री गणिविझा सूत्रं ॥ 'वुच्छं बलाबलविहिं नवबलविहिमुत्तमं विउपसत्थंजिणवयणभासियमिण पवयणसथमि जह दिg॥१॥८४७॥ दिवस तिही नक्खत्ता कणगहदिवसया मुहत्तं चोसउणबलं लग्गबलं निमत्तिबलमुत्तमं वावि ॥२॥होराबलिआ दिवसा जुण्हा पुण दुब्बला उभयपक्खेोविवरीयंराईसु बलाबलविहिं वियाणाहिं ॥३॥दारंपाडिवए पडिवत्ती नत्थि विवत्तीभणंति बीआए तइयाए अत्थसिद्धी विजयगा पंचमी भणिया ॥४॥जा एस सत्तभी सा उ बहुगुणा इत्थ संसओ नत्थिा दसभीइ पत्थियाणं भवंति निकंट्या पंथा ॥५॥ आरूग्गभविग्धं खेमियं च इक्कारसिं वियाणाहि। जेऽविहु हुँति अभित्ता ते तेरसी पिटुओ जिण॥६॥चाउद्दसिं पन्नरसिं वजिज्जा अट्ठभं च नवमि ची छढेि चउत्थिं बारसिं च दुण्हपि पक्खाणं ॥७॥ पढभी पंचमि दसमी पन्नरसिक्कारसीविय तहेवा एएसु य| दिवसेसुं सेहे निक्खमणं करे ॥८॥नंदा भद्दा विजया तुच्छ। पुन्ना य पंचमी होइ।मासेण य छव्वारे इक्विकावत्तए नियए॥९॥ नंदे जए| य पुत्रे, सेहनिक्खमणं करे। नंदे भद्दे सुभदए, पुन्ने अणसणं करे ॥१०॥ दारं पुस्सऽस्सिणिभिगसिररेवई य हत्थो तहेव चित्ता यो| अणुराहजिट्ठभूला नव नक्खत्ता गमणसिद्धा॥१॥ भिगसिर महा य मूलो विसाह तहचेव होइ अणुराहा। हत्थुत्तर रेवइ अस्सिणीय ॥श्री गणिविन्झा सूत्र । ५. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021033
Book TitleAgam 31 Prakirnaka 08 Ganivijja Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Prakashan
Publication Year2005
Total Pages21
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_ganividya
File Size6 MB
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