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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ॥ श्री संस्तारक सूत्रं ॥ काऊण नमुक्कारं जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संथारम्मि निबद्धं गुणपरिवाडिं निसामेह ॥ १ ॥ ५८७ ॥ एस किराराहणया एस किर मणोरहो सुविहिआणं। एस किर पच्छिमंते पडागहरणं सुविहियाणं ॥ २ ॥ भूईगहणं जह नक्कयाण अवमाणयं अवज्झा (वऽझा )णस्स) मल्लाणं च पडागा तह संथारो सुविहिआणं ॥ ३ ॥ पुरिसवरपुंडरीओ अरिहा इव सव्वपुरिससीहाणं । महिलाण भगवईओ जिणजणणीओ जयंमि जहा ॥४॥ वेरूलिउव्व मणीणं गोसीसं चंदणं व गंधाणी जह व रयणेसु वइरं तह संथारो सुविहिआणं ॥ ५ ॥ वंसाणं जिणवंसो सव्वकुलाणं च सावयकुलाई । सिद्धिगई य गईणं मुत्तिसुहं सव्वसुक्खाणं ॥ ६ ॥ धम्माणं च अहिंसा जणवयवयणाण साहुवयणाई । जिणवयणं च सूईणं सुद्धीणं दंसणं च जहा ॥ ७॥ कल्लाणं अब्भुदओ देवाणं दुल्लहं तिहुअणंभि । बत्तीसं देविंदा जं तं जायंति एगमणा ॥ ८ ॥ लद्धं तु तए एयं पंडिअमरणं तुं जिणवरक्खायं। हंतूण कम्ममल्लं सिद्धिपडागा तुमे लद्धा ॥ ९ ॥ झाणाण परमसुक्कं नाणाणं केवलं जहा नाणंी परिनिव्वाणं च जहा कमेण भणिअं जिणवरेहिं ॥ १० ॥ सव्युत्तमलाभाणं सामन्नं चैव लाभ मन्नंति। परमुत्तम तित्थयरो परमगई परमसिद्धति ॥ १ ॥ मूल तह संजमो वा परलोगरयाण किलिङकम्माण। सव्वुत्तमं पहाणं सामन्नं चेव मन्नंति ॥ २ ॥ ॥ श्री संस्तारक सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.021031
Book TitleAgam 29 Prakirnaka 06 Sanstarak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages23
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sanstarak
File Size6 MB
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