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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | जुग्गं निरुवसग्गं ॥ २॥ परम (प्र० पसम) सुहसपिवासो असोअहासो सजीवि अनिरासो। विसयसुहविगयरागो धम्मुज्जजायसंवेगो | ॥३ ॥ निच्छिअमरणावत्थो वाहिग्घत्थो जई गिहत्थो वा । भविओ भत्तपरिन्नाइ नायसंसारनि (प्र० ति )गुन्नो ॥ ४॥ पच्छायावर परद्धो पियधम्मो दोसदूसणसय (प्रव्ह )हो । अरिहइ पासत्थाईवि दोसदोसिल्लक लिओऽवि ॥ ५ ॥ वाहिजरमरणमयरो निरंत (प्र०ब ) रुष्पत्तिनीरनिकुरंबो। परिणामदारूण हो अहो दुरंतो भवसमुद्दो ॥ ६ ॥ इअ कलिऊण सहरिसं, गुरुपामूलेऽभिगम्म विणणं। भालयलमिलियकरकमलसेहरो वंदिउं भणइ ॥ ७ ॥ आरुहियमहं सुपुरिस ! भत्तपरिन्नापसत्यबोहित्थं । निज्जामएण गुरुणा इच्छामि भवन्नवं तरि ॥ ८ ॥ कारुन्नामयनी संदसुंदरो सोऽवि से गुरु भगइ | आलोअणवयंखामणपुरस्सरं तं पवज्जसु ॥ ९ ॥ इच्छामुत्ति भणिता भत्तिबहुमाणसुद्धसंकम्पो । गुरुणो विगयावाए पाए अभिवंदिउं विहिणा ॥ २० ॥ सल्लं उद्धरिउमणो संवेगुवे अतिव्वसद्धाओ । जं कुणइ सुद्धिहेडं सो तेणाराहओ होइ ॥ ९ ॥ अह सो आलोयणदोसवज्जियं उज्जुयं जहाऽऽयरियं । बालुव्व बालकालाउ देइ | आलोयणं सम्मं ॥२॥ ठविए पायच्छित्ते गणिणा गणिसंपयासमग्गेणं । सम्ममणुभव्विय तयं अपावभावो पुणो भणइ ॥३ ॥ दारुणदुहज्जलयर नियर भीमभवजलहितारणसमत्थे । निष्यच्चवायपोए महव्वए अम्म उक्खिवसु ॥४॥ जड़ऽवि स खंडियचंडो अक्खंडमहव्वओ जई जइवि । पव्वज्जवउट्ठावणमुट्ठावणमरिहइ तहावि ॥५॥ पहुणो सुकयाणत्तिं भिच्चा पच्चष्पिणंति जह विहिणाआ जावज्जीवपइण्णाणत्तिं गुरुणो तहा सोऽवि ॥६॥ जो साइआर चरणो आउट्टियदंडखंडियवओ वा। तह तस्सवि सम्मभुवट्ठियस्स उट्ठावणा पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्री भक्तपरिज्ञा सूत्रं ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.021029
Book TitleAgam 27 Prakirnaka 04 Bhaktaparigna Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages25
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhaktaparigna
File Size6 MB
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