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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |अमूढसन्नो चयइ देह ॥ ७॥ जाहे होइ पमत्तो जिणवयणरहिओ अणाउत्तो। ताहे इंदियचोरा करिति तवसंजमविलोव॥ ८॥|| जिणवयणमणुगयमई जं वेलं होइ संवरपविट्ठो। अग्गीव वाउसहिओ समूलडालं डहइ कम्म॥ ९॥ जह डहइ वाउसहिओ अग्गी रुक्खेवि हरियवणखंडे। तह पुरिसकारसहिओ नाणी कम्मं खयं णेई॥१००॥जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुआहिं वासकोडीहिंत नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ ऊसासमित्तेणं॥१॥नहु मरणंमि उवग्गे सक्को बारसविहो सुयक्खंधोोसव्वो अणुचिंते धणियंपि समत्थचित्तेणं॥ २॥इक्रमिवि जमि पए संवेगं कुणइ वीयरायमए।सो तेण मोहजालं छिंदइ अझप्पओगेणं ॥३॥इकमिवितं तस्स होइ नाणं जेण विरागत्तणमुर्वेइ॥४॥ इक्कंमिवि० वच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणं तेण मरियव्वं ॥५॥ जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण कायदा मुच्चइ हु संवेगी अणंतओ होअसंवेगी ॥६॥धमं जिणपन्नत्तं सम्ममिणं सहहामि तिविहेणीतसथावरभूअहियं पंथं निव्वाणनगरस्स॥ ७॥समणो मित्ति य पढ बीयं सव्वत्थ संजओ मित्तिोसव्वं च वोसिरामि जिणेहिं जं जंच पडिकुटुं॥८॥उवही सरीरगं चेव, आहारं च चव्विहोमणावयकाएणं, वोसिरामित्ति भावओ ॥९॥मणसा अचिंतणिज सव्वं भासाइ अभासणिज चौकारण अकरणिज सव्वं तिविहेण वोसिरे॥११०॥अस्संजमत्तोगसणं ( ३० अस्संजमे विरमणं) उवही विवेगकरणं उक्समो (य) अपडिरूवजोगविरओ खंती मुत्ती विवेगोय ॥१॥ एयं पच्चक्खाणं आउरजण आवईसु भावेणो अण्णय पडिवण्णो जपतो पावइ समाहि॥२॥ एयंसि निमित्तंमी पच्चक्खाऊण जइ करे कालीतो पच्चखाइयव्वं इमेण इक्केणविपएणं॥३॥मम मंगलमरिहंता सिद्धासाहू सुयं च धम्मो यो ॥ श्रीमहापचक्खाण सूत्र पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021028
Book TitleAgam 26 Prakirnaka 03 Maha Pratyakhyan Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages23
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahapratyakhyan
File Size7 MB
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