________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कामर-इविसयसुक्खाणी बहुसो सुहमणुभूयं न य सुहतण्हा परिच्छिण्णा ॥ ४॥ जा काइ पत्थणाओ कया मए रागदोसवसयेण|| पडिबंधेण बहुविहा तं निंदे तं च गरिहामि ॥५॥ तूण मोहजालं छित्तूण य अटुम्मसंकलियो जम्मणमरणरहट्ट भित्तूण भवा विमुच्चिहिसि ॥६॥ पंच य महव्वयाई तिविहंतिविहेण चारूहेउणो मणवयणकायगुत्तो सजो मरणं पडिच्छिज्जा॥७॥ कोहं माणं माया लोहं पिजं तहेव दोसं च। चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥८॥कलहं अब्भक्खाणं पेसुण्णंपि य परस्स परिवाया। परिवजंतो गुत्तो रक्खामि० ॥ ९॥ पंचिंदियसंवरणं पंचेव निलंभिऊण कामगुणे। अच्चासायणभीओ रक्खामि०॥ ७०॥ किण्हानीलाकाऊलेसाझाणाई अट्टरुदाई। परिवजंतो गुत्तो० ॥१॥ तेऊपम्हासुक्का लेसा झाणाई धम्मसुक्काई। उवसंपन्नो जुत्तो ०॥ २॥मणसा मणसच्चविऊ वायासच्चेण करणसच्चेणोतिविहेणविसच्चविऊ रक्खामि ॥३॥सत्तभयविष्पमुक्को चत्तारि निरंभिऊण य कसाए। अट्ठमयट्ठाणजढो रक्खामि ० ॥ ४॥ गुत्तीओ समिई भावणा3 नाणं च दंसणं चेव उवसंपन्नो जुत्तो० ॥५॥ एवं तिदंडविरओ तिकरणसुद्धो तिसल्लनिस्सल्लोतिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि० ॥६॥संगं परिजाणामि सल्लं तिविहेण उद्धरेऊण गुत्तीओ समिईओ मझं ताणंच सरणंच॥७॥जह खुहियं चकवाले पोयं रयणभरियं समुइंमिनिजामगा धरिती क्यकरणा बुद्धिसंपण्णा।। ८॥तवपोयं गुणभरियं परीसहुम्भीहिं खुहिउमारद्धोतह आराहिति विऊ उवएसवलंबगा धीरा॥९॥जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निरवयक्खा।पब्भारकंदरगया साहंती अप्पणो अटुं ॥८०॥जइ ताव ते सुपुरिसा गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसुधिइणियबद्धकच्छ। ॥ श्रीमहापच्चक्खाण सूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only