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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घरपवेसे पिंडवायलद्धावलद्धे उच्चावया य गामकंटया अहियासिज्जति तभटुं आराहेति त्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिति|| जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति, एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महा० जाव निक्खेवओ, इइ निसहझ्यणं१, एवं सेसावि एकारस अझयणा नेयव्वा संगहणीअणुसारेण अहीणमइरित्ता एक्कारससुवि । ३०॥२-१२ वण्हिदसा पंचभो गो १२॥ निरयावलियासुयखंधो समत्तो, सभत्ताणि उवंगाणि, निरयावलियाउवंगे णं एगो सुयखंधो पंच वगा पंचसु दिवसेसु उद्दिस्संति, तत्थ चउसु दस २ उद्देसगा पंचमवग्गे बारस उद्देससगा।३१। श्रीनिरयावलिकाधुपांगपञ्चकं सम्मत्तं ॥ महावीर स्वामीनीपट्ट परंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा-चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्यपू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासकसैलाना नरेश प्रतिबोधक-देवसूर तपागच्छ-समाचारी संरक्षक-आग्मोध्धारक पूज्यपाद आचार्य देवेश श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ़ प्रतापी, सिध्धचक्रआराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म.सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्यविजेता-मालवोध्धारक महोपाध्याय श्री धर्मसागरजी म.सा. शिष्य आगमविशारद-नमस्कार महामंत्र समाराधक पूज्यपाद पंन्यासप्रवर श्री अभयसागरजी म.सा-शिष्य शासन प्रभावक नोडर वक्ता पू. आ. श्री अशोकसागर सूरिजी म.सा. शिष्य परमात्म भक्तिरसभूत पू. आ. श्री जिनचन्द्रसागर सू.म.सा. लघुः युरु भ्राता प्रवचन प्रभावक पू. आ. श्री हेमचन्द्रसागर सू.म. शिष्य पू. गणिवर्थ श्री पूर्णचन्द्र सागरजी म.सा. आ आगमिक सूत्र अंगे सं.२०५८/५९/६० वर्ष दरम्यान संपादन कार्य माटे महेनत करी प्रकाशक दिने पू. सागरजी म. संस्थापित प्रकाशन कार्यवाहक जैनानंद पुस्तकालय सुरत द्वारा प्रकाशित करेल छे. | प्रशस्ति संपादक श्री For Private And Personal Use Only
SR No.021025
Book TitleAgam 23 Upang 12 Vrashnidasha Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages21
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vrushnidasha
File Size6 MB
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