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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | व्हाया कयबलिकम्मा कयको अमंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणिअत्था अग्गाई वराई रयाणाई गहाय पंजलिउडा पायवडिआ | भरहं रायणं सरणं उवेह, पणिवइअवच्छला खलु उत्तमपुरिसा, णत्थि भे भरहस्स रण्णो अंतिआओ भयमितिकट्टु, एवं वदित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूआ तामेव दिसिं पडिगया, नए णं ते आवाडचिलाया मेहमुहेहिं णागकुमारेहिं देवेहिं एवं वृत्ता समाणा उट्ठाए उट्ठेति ता व्हाया कयबुलिकम्मा कयको अमंगलपायच्छित्ता उल्लपडसाडगा ओचूलगणिअत्था अग्गाई वराई रयणाई गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छति त्ता करयलपरिग्गहिअं जाव मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धाविति ता अग्ग:, वराइं रयणाई उवर्णेति ता एवं व्यासी वसुहरगुणहर जयहर हिरिसिरिधी कित्तिधारक गरिंद! लक्खणसहस्सधारक रायमिदं णे चिरं धारे ॥ २१ ॥ हयवइ गयवइ णरवड़ णवणिहिवड़ भरहवासपढभवई । बत्तीसजणवयसहस्सराय साभी चिरं जीवं ॥ २२ ॥ पढमणरीसर ईसर हिअईसर महिलिआसहस्साणं। देवसयसाहसीसर चोद्दसरयणीसर जसंसी ॥ २३ ॥ सागर गिरिमेरागं उत्तरपाईणमभिजिअं तुमए । ता अम्हे ||देवाणुष्पिअस्स विसए परिवसामो ॥ २४ ॥ अहो णं देवाणुपियाणं इड्डी जुई जसे बले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे दिव्वा देवजुई दिव्वे | देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तं दिट्ठा णं देवाणुम्पियाणं इद्धी एवं चेव जाव अभिसमण्णागए, तं खामेमु णं देवाणुप्पिया!! खमंतु णं देवाणुप्पिया! खंतुमरुहंतु णं देवाणुप्पिया ! गाइ भुजो २ एवंकरणयाएत्तिकट्टु पंजलिउडा पायवडिआ भरहं रायं सरणं उविंति तए णं से भरहे राया तेसिं आवाडचिलायाणं अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छति ना ते आवाडचिलाए एवं वयासी गच्छह णं भो ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ ७२ पू. सागरजी म. संशोषित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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