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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | वा आसे वा हस्थी वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पक्खिप्पड़ तण्णं उम्मग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिअ २ एगंते थलंसि एडेइ, जण्णं णिमग्गजलाए महाणईए त णं वा जाव मणुस्से वा पक्खिप्पड़ तण्णं णिमग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहणिअ २ अंतो जलंसि णिमज्जावेइ, से तेणट्टेणं गो० ! एवं वुच्चइ उम्मगणिमग्गजलाओ, तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसिअमग्गे अणेगराय० महया० उक्किट्ठसीहणाय जाव करेमाणे सिंधूए महाणईए पुरच्छिमिल्लेणं कूलेणं जेणेव उम्मग्गजला महाणई तेणेव उवागच्छड़ ता वद्धइरयणं सद्दावेइ ता एवं वायासी खिप्पामेव भो देवाणुष्पिआ ! उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविद्वे अयलमकंपे अभेज्जकवए सालंवणबाहाए सव्वरयणाम सुहसंक मे करेहि त्ता मम एअमाणत्तिअं खिष्पामेव पच्चष्पिणाहि, तए णं से वद्धइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए जाव विणएणं पडिसुणेइ ता खिप्पामेव उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविट्टे जाव सुहसंक मे करेइ ना जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ ता जाव एअमाणत्तिअं पच्चष्पिणइ, नए णं से भरहे राया सखंधावारवले उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ तेहिं अणेगखंभसयसण्णिविद्वेहिं जाव सुहसंक मेहिं उत्तरेइ, तए णं तीसे तिमिस्सगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया २ कोंचारखं करेमाणा सरसरसरस्स सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था (प्र० या ) ॥ ५५ ॥ तेणं कालेणं० उत्तरडभरहे वासे बहवे आवाडा णामं चिलाया परिवसंति अड्डा दित्ता वित्ता। विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइन्ना बहु धणबहु जायरू वर यया आओगपओगसंपत्ता विच्छड्डि अपार भत्तपाणा बहुदासीदासगोमहिसगवेल गप्पभूआ बहुजणस्स ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ ६४ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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