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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |चाअंगिणिं सेणं सण्णाहेह चाउग्घंटं च आसरहं पडिकप्पेहत्तिकट्टु मज्जणघरं अणुपविसइ ता समुत्त तहेव जाव धवलमहामेहणिग्गए | जाव मज्जणघराओ पडिणीक्खमइ ता हयगयरहपवरजोहवाहण जाव सेणाइ पहिअकित्ती जेणेव बाहिरिआ उवद्वाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ ता चाउग्घंट आसरहं दुरूढे ॥ ४५ ॥ तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे हयगयर हपवर जोहक लिआए सद्धिं सेणाए संपरिवुडे महयाभडचडगर पह गरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसिअमग्गे अणेगरायवरसहस्साणु आयमग्गे महया उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलरवेणं पक्खुभिअमहासमुद्दरवभूअंपिव करेमाणे २ पुरत्थिमदिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहइ जाव रहवरस्स कुप्परा उल्ला, तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हड़ ता रहं ठवेइ त्ता धणुं परामुसइ, तए णं तं अइरूग्गयबालचन्दइंदधणुसन्निकासं वरमहिसदरिअदप्पि अदढघणसिंगग्गरइअसारं उरगवरपवरगवलपवरपर हुअ भमर कुलणीलिणिद्धधंत धो अपट्ट णिउणोवि अभिसिमिसिंतमणिरयणघंटि आजालपरिक्खित्तं तडितरुणतरणिकिरणतवणिज्जबद्धचिंधं दद्दरमलयगिरिसिहर के सरचामर वालद्धचंदचिधिं कालहरिअरतपी असुकिल्ल बहुण्हारूणिसंपिणद्धजीवं जीविअंतकरणं धणुं गहिऊण से णरवई उसुं च वरवइरकोडिअं वइरस्सारतोंडं कंचणमणिकणगरयणधोइट्ठसुकयपुंखं अणेगमणिरयणविविह सुविरइयनामचिंधं वइसाहं ठाइऊण ठाणं आयतकण्णायत्तं च काऊण उसुमुदारं इमाई वयणाई तत्थ भणिअ से णरवई हंदि सुणंतु भवंतो बाहिरओ खलु सरस्स जे देवा। णागासुरा सुवण्णा तेसिं खुण (प्र० थुणि)मो पणिवयामि ॥ १२ ॥ हंदि सुणंतु भवंतो अब्भिंतरओ सरस्स जे देवा । णागासुरा सुवण्णा ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ ४९ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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