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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | भंते! समाए उत्तमकट्टपत्ताए भरहस्स वासस्स के रिसए आयार भावपडोआरे भविस्सइ ?, गो०! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए कोलाहलभूए समाणुभावेण य खरफरु सधूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा य वाया संवट्टगा य वाइस्संति, इह अभिक्खणं २ धूमाहिंति य दिसा समंता रउस्सला रेणुकलुसतमण्डलणिरालोआ समयलुक्खयाए णं अहिअं चंदा सीअं मोच्छिहिंति अहिअं सूरिआ तविस्संति, अदुत्तरं च णं गो० अभिक्खणं अरसमेहा विरस० खार० खत्त (ट्ट पा० )० अग्गि० विज्जु० विसमेहा (असणि० पा० ) अज | (पिपा० ) वणिज्जोदगा वाहिरोगवेदणोदीरणपरिणामसलिला अमणुण्णपाणिअगा चंडानिलपहततिक्खधाराणिवातपरं वासं वासिहिंति, जेणं भरहे वासे गामागरणगरखेडकब्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमयं जणवयं चउप्पयगवेलए खहयरे पक्खिसंधे गामारण्णप्पयारणिरए तसे य पाणे बहुप्पयारे रुक्खगुच्छ गुम्मलयवल्लिपवालंकुरमादीए तणवणस्सइकाइए ओसहीओ य विद्धंसेहिंति पव्वयगिरिडोंगरुत्थलभट्टिमादीए य वेअड्ढगिरिवज्जे विरावेहिंति सलिलबिलविसमगत्त ( दुग्ग पा० ) णिण्णुण्णयाणि य गंगासिंधुवज्जाई समीकरेहिंति, तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स भूमीए के रिसए आगार भावपडोआरे भविस्सइ ?, गो० ! भूमी भविस्सइ इंगालभूआ मुम्मुर० छारिअ० तत्तकवेल्लुअ० तत्तसमजोइ० धूलिबहुला रेणु० पंक० पणय० चलणिबहुला वहूणं धरणिगोअराणं सत्ताणं दुन्निक्कमा यावि भविस्सइ, तीसे णं भंते! समाए भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयांरभावपडोआरे भविस्सइ ?, गो० ! मणुआ भविस्संति दुरुवा दुवण्णा दुगंधा दुरसा दुफासा अणिट्ठा अकंता अम्पि असुभा अमणुन्ना अमणामा हीणस्सरा दीणस्सरा अणिट्ठस्सरा अकंतस्सरा अपिअस्सरा पू. सागरजी म. संशोधित 1 ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ ३६ For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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