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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिणभत्तीए केई जीअमेअंतिकट्ट केई धम्मोत्तिकट्ठ गेण्हंति, तए णं से सक्के देविंदे देवराया बहवे भवणइजाववेमाणिए देवे एवं व्यासी|| खियामेव भो देवाणुप्पिआ! सव्वरयणामए महइमहालए तओ चेइअथूभे करेह, एगं भगवओ तित्थगरस्स चिइगाए एगं गणहरचिइगाए एगं अवसेसाणं अणगारणं चिइगाए, तए णं ते बहवे जाव करेंति, तए णं ते बहवे भवणवइजाववेमाणिआ देवा तित्थगरस्स परिणिव्वाणमहिमं करेंति ना जेणेव नंदीसरवरे दीवे तेणेव उवागच्छन्ति, तए णं से सक्के देविंदे देवराया पुरच्छिभिल्ले अंजणगपव्वए अट्ठाहिमहामहिमं करेति, तए सकस्स देविंदस्स० चत्तारि लोगपाला चउसु दहिमुहगपव्वएसुअढाहियं महामहिमं करेंति, ईसाणे देविंदे देवराया उत्तरिल्ले अंजणगे अट्ठाहि तस्स लोगपाला चउसुदहिमुहगेसु अढाहियं० चमरो य दाहिणिल्ले० तस्स लोगपाला दहिमुहगपव्वएसु० बली पच्चथिमिल्ले० तस्स लोगपाला दहिमुहगेसु, तए णंसे बहवे भवणवइवाणमंतर जाव अढाहिआओ महामहिमाओ करेंति त्ता जेणेव साइं २ विमाणाई जेणेव साई २ भवणाई जेणेव साओ २ सभाओ सुहम्माओ जेणेव सगा २ माणवगा चेइअखंभा तेणेव उवागच्छंति त्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिसकहाओ पक्खिवंति त्ता अग्गेहिं वरेहिं मल्लेहि य गंधेहि य अच्चेति त्ता विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति॥ ३४॥ तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहि वणपज्जवेहि तहेव जाव अणतेहिं उठाणकम्म जाव परिहायमाणे एत्थ णं दूसमसुसमाणाभं समा काले पडिवजिंसु समणाउसो!, तीसे गं समाए भरहस्स वासस्स के रिसए आगारभावपडोआरे पं०?, गो०! बहुसभरमणिजे भूमिभागे पं०, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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