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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंदा पभासिंसु० दो सूरिया तवइंसु० छप्पण्णंणक्खत्ता जोगं जोइंसु० छावत्तरं महग्गह सयं चार चरिसुं० 'एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं|| खलु भवे सहस्साईणवयसया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं ॥८३॥१२७) कइणं भंते ! सूरमंडला पं०?, गो०! एगे चउरासीए |मंडलसए पं०, जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पं०?, गो०! जंबुद्दीवे असीयं जोयणस्यं ओगाहित्ता एत्थ णं पण्णट्ठी सूरमंडला पं०, लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइयं ओगाहित्ता केवइया सूरमंडला पं०?, गो०! लवणे समुहे तिणि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता एत्थ णं एगुणवीसे सूरमंडलसए पं०, एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे लवणे य समुद्दे एगे चुलसीए सूरमंडलसए भवंतीतिमक्खायं १२८ सव्वब्अंतराओ णं भंते ! सूरमंडलाओ केवइयं अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पं०?, गो०! पंचदसुत्तरे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरए सूरमंडले पं० ११२९। सूरमंडलस्सणं भंते ! सूरमंडलस्सय केवइयं अबाहाए अंतरे ५०?, गो० ! दो जोयणाई अबाहाए अंतरे पं० १३० सूरमंडलेणं भंते ! केवइयं आयामविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं केवइयं बाहल्लेणं पं०?, गो० अडयालीसं एगसद्विभाए जोयणस्स आयामविखंभेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं चउवीसं जोयणस्स एगसट्ठीभाए बाहल्ले पं० १३१॥ जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइअंअबाहाए सव्वब्भंतरे सूरमंडले पं०?, गो०! चोआलीसंजोयणसहस्साई अट्ठ य वीसे जोयणसए अबाहाए सव्वब्भूतरे सूरमंडले पं०, जंबुद्दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयं अबाहाए अब्भतराणंतरे सूरमंडले पं० गो०! चोआलीसंजोयणसहस्साइं अट्ठय बावीसे जोयणसए अडयालीसंच एगसद्विभागे जोयणस्स अबाहाए अब्भंतराणंतरे सूरमंडले || ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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