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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org |च गणिअपयं ॥ ८२ ॥ जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कति वासा पं०, गो० ! सत्त वासा पं० तं० भरहे एरवए हिरण्णवए हरिवासे रम्भगवासे | महाविदेहे जंबुद्दीवे के वइआ वासहरा पं० के वइआ मंदरा पव्वया पं० के वइआ चित्तकूडा के वइआ विचित्तकूडा के वइआ जमगपव्वया केवड़आ कंचणपव्वया के वइआ वक्खारा केवइआ दीहवेअद्धा केवइआ वट्टवेअद्धा पं० ? गो० ! जंबुद्दीवे छ वासहरपव्वया एगे मंदरे पव्वए एगे चित्तकूडे एगे विचित्तकूडे दो जमगपव्वया दो कंचणगपव्वयस्या वीसं वक्खारपव्वया चोत्तीसं दीहवेयद्धा चत्तारि वट्टवेयद्धा एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दुण्णि अउणत्तरा पव्वयसया भवतीतिभक्खायं, जंबुद्दीवे केवइया वासहर कूडा के वइया वक्खारकूडा केवइया वेयद्धकूडा केवइया मंदरकूडा पं० ?, गो० ! छप्पण्णं वासहरकूडा छण्णउई वक्खारकूडा तिण्णि छलुत्तरा वेयद्धकूडसया नव मंदर कूडा पं०, एवामेव सपुव्वारेणं जंबुद्दीवे चत्तारि सत्तट्ठा कूडसया भवतीत्मिक्खायं, जंबुद्दीवे भरहे वासे कति तित्था पं० ?, गो० ! तओ तित्था पं० तं० मागहे वरदामे पभासे, जंबुद्दीवे एरवए वासे कति तित्था पं०?, गो० ! तओ तित्था पं० तं० मागहे वरदामे पभासे, जंबुद्दीवे एरवए वासे कति तित्था पं०?, गो० ! तओ तित्था पं० तं० मागहे वरदामे पभासे, जंबुद्दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टि विजए कति तित्था पं० ?, गो० तओ तित्था पं० तं०-मागहे वरदामे पभासे, एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे एगे बिंउत्तरे तित्थसए भवतीतिभक्खायं, जंबुद्दीवे केवइयाओ विज्जाहरसेढीओ केवइयाओ अभिओगसेढीओ पं० ?, गो० ! जंबुद्दीवे अट्ठ सट्ठी विज्जाहर सेढिओ अट्ठ सट्ठी अभिओग सेढीओ पं० एवामेव सप्पुव्वावरेणं जंबुद्दीवे छत्तीसे सेढिसए भवतीतिभक्खायं, जंबुद्दीवे ॥ श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १७० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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