SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गो० ! हुंडसं० पं०, एवं पज्जत्तापज्जत्ताणवि, गम्भवक्कंतियतिरिक्ख० भंते! किंसंठिए पं०?, गो० ! छव्विहसंगणसंठिए पं० तं०समचरंससं० जाव हुंडठा०, एवं पज्जत्तापजत्ताणवि, एवमेते तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा, जलयरपं० भंते! किंसंठिया पं० ?, गो० ! छव्विहसंठाणे पं० तं०- समचरंसे जाव हुंडे, एवं पज्जत्तापज्जत्ताणवि, संमुच्छिमजलयरा हुंडठाणसंठिता, एतेसिं चेव पज्जता अपज्जत्तगावि एवं चेव, गब्भवक्कंतियजलयरा छव्विहसंठाणसंठिता एवं पज्जत्तापजत्ताणवि, एवं थलयराणवि णव सुत्ताणि, एवं चउप्पयथलयराणवि उरपरिसम्पथलयराणवि भुयपरिसम्पथलयराणवि, एवं खहयराणवि णव सुत्ताणि नवरं सव्वत्थ समुच्छिमा हुंडठाणसंठिता भाणितव्वा, इयरे छसुवि, मणूसपंचिंदिय णं भंते! किंसंठिए पं?, गो० ! छव्वीह संठाणसंठिते पं० तं० - समचउरंसे जाव हुंडे, पजत्तापजत्ताणवि एवं चेव, गब्भवक्कंतियाणवि एवं चेव, पज्जत्तापज्जत्ताणवि एवं चेव, संमुच्छिमाणं पुच्छा, गो० ! हुंडसंगणसंविता पं० (२६९ । ओरालियसरीरस्स णं भंते! के महालिया सरीरोगाहणा पं० ?, गो० ! जह० अंगुलस्स अंसेखेज्जतिभागं उक्को० सातिरेगं० ! जोयणसहस्सं, एगिंदियओरालियस्सवि एवं चेव जहा ओहियस्स, पुढवीकाइयए गिंदियओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पं० ?, गो० ! जह० 30 अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, एवं अपज्जत्तयाणवि पज्जत्तयाणवि एवं सुहुमाणं पज्जत्तापजत्ताणं, बादराणं पज्जत्तापज्जत्ताणवि, एवं एसो नवओ भेदो जहा पुढविक्काइयाणं तहा आउक्काइयाणवि तेउक्काइयाणवि वाउक्काइयाणवि, वणस्सइकाइय ओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ २६१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021017
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy