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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धम्मस्थिकाए णं पुच्छा, गो०! सव्वद्धं, एवं जाव अद्धासमए। दारं २१॥ २५३) चरिमेणं पुच्छा, गो०! अणादीए सपजवसिते, अचरिमे णं पुच्छी, गो०! २ दुविधे पं० २०-अणादीए वा अपज्जवसिते सादी वा अपजवसिते। दारं २२॥ २५४॥ कायटिइनामपयं१८॥ | जीवा णं भंते! किं सम्मट्ठिी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी?, गो०! जीवा सम्मादिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छा दिट्ठीवि, एवं नेरझ्यावि, असुरकुमारावि, एवं चेव जाव थणियकुमारा, पुढवीकाइया णं पुच्छा, गो०! २ को सम्मादिट्ठी मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइंदियाणं पुच्छा, गो०! बेइंदिया सम्मादिट्ठी मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी, एवं जावचरिदिया, पंचिदियतिरिक्खजोणियामणुस्सा वाणमंतरजोइसियवेमाणियायसम्मादिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीविसम्मामिच्छादिट्ठीवि, सिद्धा णं पुच्छा, गो०! सिद्धा सम्मादिट्ठी णो मिच्छादिट्ठी णो सम्मामिच्छादिट्ठी १२२५१ सम्मत्तपयं १९॥ नेरइय अंतकिरिया अणन्तरं एगसमय उवट्टा तित्थगरचकिबलदेववासुदेवमंडलियरयणा य ॥२१३॥ दारगाहा। जीवेणं भंते० अंतकिरियं करेज्जा?, गो०! अत्थेगइए करेजा अत्थेगतिए णो करेजा, एवं नेरइए जाव वेमाणिए, नेरइए णं भंते! नेरइएसु अंतकिरियं करेजा?, गो०! नो इण्टे समढे, नेरइया णं भंते! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेजा?, गो०! नो इणढे समटे, एवं जाव वेमाणिएसु, नवरं मणूसेसु अंतकिरियं करेजत्ति पुच्छा, गो०! अत्थेगतिए करेजा अत्थेगतिए णो करेजा, एवे असुरकुमारा || श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021017
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size19 MB
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