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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ॥८५॥ एवंपि तत्त विहरन्ता पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं । संलुञ्चमाणा सुणएहिं दुच्चराणि तत्थ लाढेहिं ॥ ८६ ॥ निहाय दण्डं पाणेहिं तं कायं वोसज्जमणगारे । अह गामकण्टए भगवन्ते अहिआसए अभिसमिच्चा ॥ ८७॥ नागो संगामसी से वा पारए तत्थ से महावीरे । एवंपि तत्थ (प्र० तया) लाढेहिं अलद्धपुव्वोवि एगया गामो ॥८८॥ उवसंकमन्तमपडिनं गामंतियम्मि (प्र० पि) अप्पत्तं । पडिनिक्खमित्तु लूसिंसु एयाओ परं पलेहित्ति ॥ ८९ ॥ हयपुव्वो तत्थ दण्डेण अदुवा मुट्ठिणा अदु कुन्तफलेण । अदु लेलुणा कवालेण हन्ता हन्ता बहवे कन्दिंसु ॥९०॥ मंसाणि (प्र० मंसूणि) छिन्नपुव्वाणि उट्टंभिया एगया कार्यं । परीसहाईं लुचिंसु अदुवा पंसुणा उवकरिंसु ॥९१॥ उच्चालइय निहणिंसु अदुवा आसणाउ खलइंसु । वोसटुकायपणयाऽऽसी दुक्खसहे भगवं अपडिने ॥ ९२ ॥ सूरो सङ्गामसी से वा संवुडे तत्थ से महावीरे । पडि सेवमाणे फरुसाई अचले भवं रीत्थिा ॥ ९३ ॥ एस विही अणुक्कन्तो. जाव रीयंति ॥ ९४ ॥ त्तिबेमि ॥ अ० ९ ॐ० ३ ॥ ओमोयरियं चाएइ अपुट्ठेऽवि भगवं रोगेहिं । पुढे वा अपुढे वा नो से साइज्जई तेइच्छं ॥ ९५ ॥ संसोहणं च वमणं च गायब्मंगणं च सिणाणं च । संबाहणं च न से कप्पे दन्तपक्खालणं च परिनाए (प्र० य ) ॥ ९६ ॥ विरए गामधम्मेहिं रीयइ माहणे अबहुवाई | सिसिरंमि एगया भगवं छायाए झाइ आसीय ॥९७॥ आयावइ य गिम्हाणं अच्छइ उक्कुड्डुए अभितावे । अदु जाव इत्थ लूहेणं ओयणमंथुकुम्भासेणं ॥ ९८ ॥ एयाणि तिन्नि पडिसेवे अट्ठमासे अ जावयं भगवं । अपिइत्थ एगया भगवं अर्द्धमासं अदुवा मासंपि ॥ श्री आचाराङ्ग सूत्रं ॥ ४६ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021002
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size12 MB
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