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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | पाणिन्सामि, अदुवा तत्थ परि (प्र०२) कमंतं भुजो अचेलं तणफासा फुसंति सीयफासा फुसंति तेउफासा फुसंति दंसमसगफासा | फुति गयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ अचेले लाघवं आगममाण,(एवं खलु से उवगरणलाघवियं तवं कम्मक्खयकारणं करेड पा) नवे से अभिसमनागए भवइ जहेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसभिच्चा सवओ सव्वत्ताए संभत्तमेव समभिजाणिजा, एवं निं महावीराणं चिरायं पुवाई वासाणिरीयमाणाणंदवियाणं पास अहियासियं । १८२ आगयपनाणाणं किसा बाहवो भवंति पण य भंससोणिए विस्सेणिं कद्दू परित्राय, एस तिण्णे भुत्ते विरए वियाहिएत्तिबेमि । १८३। विश्यं भिक्खू रीयंत चिरराओसियं अइ तन्थ किं विधारए ?, संधेमाणे समुट्ठिए, जहा से दीवे असंदीणे एवं से धमे आरियपदेसिए, ते अणवकंखमाणापाणे अणइवाएमाणा जइया मेहाविणा पंडिया, एवं तेसिं भगवओ अणुढाणे जहा से दियापोए एवं ते सिस्सा दिया यराओ य अणुपुव्वेण वाइयत्तिबेमि । ११८४५॥ अ०६३०३ ॥ एवं ते सिस्सा दिया यराओ य अणुपुव्वेण वाइया तेहिं महावीरेहिं पत्राणमन्तेहिं , तेसिमंतिए पत्राणमुवलब्म हिच्चा उवसभं ( अहेगे पा० ) फारुसियं समाइयं (रुहं पा०) ति, वसित्ता बंभचेरंसि आणं तं नोत्ति मन्त्रमाणा, आघायं तु सुच्चा निसम्म समणुना जीविस्सामो, एगे निक्खमंते असंभवंता विडज्झमाणा कामेहिं गिद्धा अझोववना समाहिमाघायम जोसयंता सत्थारमेव फरुसं वयंति । १८५१ सीलभंता उपवसंता संखाए रीयमाणा, असीला अणुवयमाणस्स बिइया मंदस्स बालया। १८६। नियट्टमाणा वेगे ॥ ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्र पू. सागरजी म संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021002
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size12 MB
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