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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोभी समावइ (प्र० ज्जि) जा मोसंवयणाए, लोभं परियाणइ से निग्गंथे नो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा ३ । अहावरा चउत्था | भावणा भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया, केवली बूया भयपत्ते भीरु समावइज्जा मोसं वयणाए, भयं परिजाणइ से निग्गंथे नो भयभीरुए सिया चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा हासं परियाणइ से निग्गंथे नो य हासणए सिया, केव० | हासपत्ते हासी समावइज्जा मोसं वयणाए, हासं परियाणड़ से निग्गंथे नो हासणए सियत्ति, पंचमा भावणा ५ । एतावता दोच्चे महव्वए सम्मं कारण फासिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ, दुच्चे भंते ! महव्वए० ।। अहावरं तच्छं भंते ! महव्वयं पच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादाणं से गामे वा नगरे वा रन्ने वा अप्यं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं (प्र० मंतमचित्तं ) वा नेव सयं अदिन्नं गिहिज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गिण्हाविज्जा अदिन्नं अन्नंपि गिण्हंतं न समणुजाणिजा जावज्जीवाए जाव वोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा अणुवीइ मिउग्गहं जाइ से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाड़ से निग्गंथे, केवली बूया अणणुवीइ मिउग्गहं जाइ निग्गंथे अदिन्नं गिण्हेज्जा, अणुवीइ भिउग्गहं जाइ से निग्गंथे नो अणणुवीइ मिउग्गहं जाइत्ति पढमा भावणा | १ । अहावरा दुच्चा भावणा अणुत्रवियपाणभोयणभोई से निग्गंथे नो अणणुत्रविअपाणभोयण भोई, केवली बूया अणणुन्नवियपाण| भोयणभोई से निग्गंथे अदिन्नं भुंजिज्जा, तम्हा अणुन्नवियपाण भोयण भोई से निग्गंथे नो अणणुन्नवियपाणभोयण भोईति दुच्चा भावणा २। अहावरा तच्चा भावणा निग्गंथे णं उग्गहंसि उग्गहियंसि एतावताव उग्गहणसीलए सिया, केवली बूया निग्गंथे णं उग्गहंसि पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ १२८ For Private And Personal Use Only
SR No.021002
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size12 MB
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