SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिइयं नो सेवे निस्सारं पासिय नाणी, उववायं चवणं णच्चा अणण्णं चर माहणे, से न छणे न छणावर छणंतं नाणुजाणइ, निव्विंद|| नंदि अरए पयासु अणोमदंसी निसण्णे पावेहिं कम्मेहिं ।११५।कोहाइमाणं हणिया य वीरे, लोभस्स पासे नित्यं महंत । तम्हा य(प्र० हि० ) वीरे विरए वहाओ, छिंदिज सोयं लभूयगामी ॥८॥ गंथं परिण्माय इहऽज्ज धीरे, सोयं परिणाय चरिज दंते ।उम्मज लद्धं इह | माणवेहिं, नो पाणिणं पाणे समारभिज्जा ॥९॥ सितिबेमि ॥अ० ३३०२॥ __ संधिं लोयस्स जाणित्ता आयओ बहिया पास तम्हा न हंता न विधायए, जमिणं अनमत्रवितिगिच्छाए पडिक्लेहाए न करेइ पावं कम्मं किं तत्त्य मुणी कारणं सिया ? ११६। समयं तत्थुवेहाए अप्पाणं विष्यसायए अणनपरंभ नाणी, नो पमाए क्याइवि। आयगुत्ते सया वीरे, जायामायाइ जावए ॥१०॥ विरागं रूवेहिं (प्र० सु) गच्छिज्जा महया खुड्डएहि य (प्र०वा० ) (विसयंमि पंचगंभीवि, दुविहंमि तियं तियं । भावओ सुठु जाणित्ता से न लिप्पइ दोसुवि ॥१॥ पा० ) आगई गई परिण्णाय दोहिवि अंतेहिं अदिस्समाणेहिं से न छिज्जइ न भिज्जइ न डझइ न हमइ कंचणं सव्वलोए ।११७। अवरेण पुस्विं न सरंति एगे, किमस्स तीयं ? किं वाऽऽगमिस्सं ? । भासंति एगे इह माणवाओ, जमस्स तीयं तमागमिस्सं ॥११॥ (अवरेण पुव्वं किह से अतीतं, किह आगमिस्सं न संरति एगे आसंति एगे इह माणवाओ, जह से अईयं तह आगमिस्सं ॥१॥पा० ) नाईयमटुं न य आगमिस्सं, अटुं नियच्छन्ति तहागया विहूय कप्पे एयाणुपस्सी, निझोसइत्ता खवगे महेसी ॥१२॥ का अरई के आणंदे ?., इत्थंपि अगहे चरे, सव्वं हासं परिच्चज, ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्र॥ १८ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021001
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy