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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कम्मसरीरगं ॥३॥ पंतं लूहं सेवंति वीरा संमत्तदंसिणो । एस ओहंतरे मुणी तिने मुत्ते विरए वियाहिएत्तिबेमि १०० दुव्वसुमुणी|| अणाणाए तुच्छए, गिलाइ वत्तए, एस सुवसु वीरे पसंसिए अच्चेइ लोयसंजोगं एस नाए पवुच्चइ १०१।जं दुक्खं पवेइयं इह माणवाणं तस्स दुक्खस्स कुसला परिन्नमुदाहरंति इइ कम्म परित्राय सव्वसो, जे अणनदंसी से अणनाराम जे अणण्णारामे से अणनदंसी, जहा पुण्णस्स कथइ तहा तुच्छस्स कत्थइ जहा तुच्छस्स कत्थइ तहा पुण्णस्स कत्थइ । १०२। अविय हणे अगाइयमाणे इत्थंपि जाण सेयंति नत्थि, केयं पुरिसे कं च नए ?, एस वीरे पसंसिए जे बद्ध पडिमोयए उड्ढे अहं तिरियं दिसासु, से सव्वओ सव्वपरित्राचारी न लिप्यइ छणपएण, वीरे से मेहावी अणुग्धायणस्स खेयने जे य बन्धपमुक्खमन्नेसी, कुमले पुण नो बद्धे नो मुक्के । १०३॥ से जंच आरंभे जं च नारभे अणारद्धं च न आरभे छणं छणं परिण्णाय लोगसन्नं च सव्वसो । १०४। उद्देसो पासगस्स नत्थि, वाले पुण निहे | कामसमणुन्ने असमियदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्ल्ड अणुपरियट्टइत्तिबेमि । १०५।३० ६ ॥ लोकविजयाध्ययनं २ ॥ सुत्ता अभुणी, सया (प्र० सययं ) मुणिणो जागरंति ।१०६।लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं, समयं लोगस्स जाणित्ता इत्थ सत्थोवरए जास्सिमे सदा य रूवा य रसा य गंधा य फासा य अभिसमनागया भवंति । १०७१ से आयवं नाणवं ( से आयवी नाणवी पा० ) वेयवं धंभवं पनाणेहिं परियाणइ लोय, मुणीति वुच्चे धम्मविउ उज्जू आवट्टसोए संगमभिजाणइ । १०८। सीउसिणच्चाई से निग्गंथे अइरुइसहे फस्यं नो वेएइ जागरवेरोवरए वीरे, एवं दुक्खा पमुक्खसि, जरामच्चुवसोणीए नरे सययं मूढे धम्म नाभिजाण || ॥श्रीआचारङ्ग सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021001
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages147
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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