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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६२ अनुयोगद्वारसूत्रे सामाथिकं तु आगमतो नो आगमतो भेदेन द्विविधं प्रज्ञप्तम् । तत्र आगमतो भाव. सामायिक-ज्ञायक उपयुक्तो बोध्यम् । नो आगमतो भावसामायिकं यथा भवति तथहि-'जस्स सामाणिो अप्पा' इत्यादि गाथा षट्केन । अयं भावः-यस्य मनुष्यस्य मूलगुणरूपे संयमे उत्तरगुण - मूहरूपे नियमे तपसि-अनशनादौ च इए दुबिहे पण्णत्ते) भाव सामायिक दो प्रकार को है । (तं जहा) जैसे (आगमओ य नो आगमओ य) एक आगम से दूसरा नो आगम से (से कि तं आगम भो भावसामाइए ) हे भदन्त ! आगम से भाव सामायिक क्या है? __उत्तर--(आगमओ भावसामाइए-जाणए उवउत्ते-से तं आग. मओ भावसामाइए) आगम से भावसामायिक ज्ञायक उपयुक्त है। अर्थात् सामायिक इस पदका जो ज्ञाता है और उसमें उसका उपयोग है, ऐसा वह ज्ञायक आश्मा आगम की अपेक्षा भावसामा यिक है। (से कि तं नो आगमओ भावसामाइए) हे भदन्त ! नो आगम की अपेक्षा भाव सामायिक क्या है ? ___ उत्तर--(नो आगमओ भोवलामाइए ) नो आगम की अपेक्षा भावसामायिक इसमकार से है-(जस्त सामाणिो अप्पा संजमे. णियमे तवे । तस्स सामाइयं होह, इह के वलि भासिय १। जिस मनुष्य 3थन छे. (से कि त भावमामाइए १) महत! मासामायि छ ? (भावसामाइए दुविहे पण् गत्ते) मावसामाथि ये मारना छे. (तजहा) २ (आगमओ य नो आगम ओ य) से मामयी मने द्वितीय ना मामथी (से कि त आगमओ भावसामाइए) 3 महत! माथी मार સામાયિક શું છે? उत्तर--(आगमओ भावसामइए-जाणर उवउत्ते-से त आगमओ भावसामाइए) मामथा मासामायि ज्ञाय ७५युत छ. मेटले है સામાયિક આ પદને જે જ્ઞાતા છે અને તેમાં તેનો ઉપયોગ છે, એ તે જ્ઞાપક मामा मागमती अपेक्षाये लापसामाथि छ. (से कि त नोआगमओ भावसामाइए) ! RL Amमनी अपेक्षा माप सामायि शुछे ? उत्तर-(नो आगमओ भावसामाइए) नो सामनी अपेक्षा सार सामायि: ॥ प्रमाणे छे. (जस्स सामाणिओ अप्पा संजमे णियमे तवे तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासिय ॥१॥) २ मनुष्यनी मात्मा भूखशुए For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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