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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુશ્કે अनुयोगद्वार सूत्र और प्रकट करते हैं - (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया तहा भाणियब्बा) मुक्तवैकियशरीरों का प्रमाण सामान्य औदारिकशरीरों के प्रमाण बराबर हैं (आहारगसरीरा जहा वेइंदियाणं, तेयगकम्नय सरीरा जहा ओरालिया) इनके आहारक शरीरों का प्रमाण द्वीन्द्रिय जीवों के आहारक शरीरों के जैसा है। तैजस कार्मण शरीरों का प्रमाण औदारिक शरीरों के जैसा है। यहां जो 'जहा वेइंदियाणं तहा तेइंदियचउरिंदियाण वि भाणियन्त्रा' ऐसा कथन किया है वह असंख्येयता सामान्य को लेकर किया गया जानना चाहिये, संख्या को लेकर किया गया नहीं जानना चाहिये । क्योंकि इन में परस्पर में संख्या की समानता नहीं है । उक्त च करके सोही कहा है । (एएसि च णं भंते!' इत्यादि हे भदन्त । इन एकेन्द्रिय, दीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, और पंचेन्द्रिय जीवों में कौन जीव किन से अल्प हैं ? कौन किनसे बहुत हैं ? कौन किनसे विशेषाधिक हैं ? उत्तर - हे गौतम! सब से कम पंचेन्द्रिय जीव हैं । इनसे कुछ अधिक चतुरिन्द्रिय जीव हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों की अपेक्षा श्रीन्द्रिय जीव कुछ अधिक हैं। इनकी अपेक्षा द्वीन्द्रिय जीव डेंटलु छे ? मावात सूत्रार अरे छे. (मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरोलिया तहा भाणियव्वा) भुत वैडिय शरीशनु प्रमाणु सामान्य मोहारि शरीरोना प्रभालु भराभर है. (आहारगसरीरा जहा बेइंदियाणं, तेयगकम्मय सरीरा जहा ओरालिया) खेभना आहार४ शरीशनु प्रमाणु द्वीन्द्रिय लवाना આહારક શરીરીના પ્રમાણ જેવુ' છે. તૈજસ અને કાણુ શરીરીનુ પ્રમાણુ मोहारिक शरीशना प्रमाणु भेवु छे, सही ने "जहा बेइंदियागं तहा तेइंदियउरिदियाण विभाणियन्त्रा) खाबु उथन छे, ते असंख्येयता सामान्यने बहने કહેવામાં આવ્યુ છે. સંખ્યાના આધારે કરવામાં આવ્યુ'નથી તેમ જાણવુ જોઇએ કેમકે આમાં પરસ્પરની સખ્યાની સલામતી નથી. ઉક્તચકહીને તેજ વાત स्पष्ट अश्वामां भावी छे (एएसिं च णं भंते । इत्यादि) हे लढत ! मा એકેન્દ્રિય, દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પચેન્દ્રિય જીવામાં કચે જીવ કયા જીવ કરતાં અલ્પ છે ? કયા કાના કરતાં વધારે છે? કાકાના કરતાં વિશેષાધિક છે? ઉત્તર-ડે ગૌતમ! સૌથી અલ્પ પચેન્દ્રિય જીવેા છે. એમના કરતાં કઈક વધારે ચતુરિન્દ્રિય જીવે છે, ચતુરિન્દ્રિય જીવેાની અપેક્ષા ત્રીન્દ્રિય For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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