SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१३ नारकादीनामौदारिकादिशरीरनि० ४१७ शरीराणि प्रज्ञतानि ? गौतम ! बैंक्रियशरीराणि द्विविधानि प्रज्ञतानि, तद्यथाबद्धानि च मुक्तानि च । तत्र खलु यानि तानि बद्धानि तानि खलु असंख्येयानि असंख्येयाभ्य उत्सपिण्यवसर्पिणीभ्योऽपहियन्ते कालतः, क्षेत्रतः असंख्येया: नेरइया णं ओरालियसरीरा तहा भाणियबा) हे गौतम ! असुरकुमारों के औदारिक शरीर नारकों के औदारिकशरीर के जैसा ही होते है-अर्थात्-जिस प्रकार चैक्रिय शरीरवाले होने के कारण नारकों में बद्ध औदारिक शरीर नहीं होते हैं वैसे ही असुरकुमारों को वैक्रिय शरीरशाली होने के कारण उनके भी बद्धऔदारिक शरीर नहीं होते हैं। परन्तु जो मुक्त औदारिक शरीर हैं वे जिस प्रकार नारकों में सामान्यतः अनन्त होते है, उसी प्रकार यहां पर भी वे अनन्त होते हैं । (असुरकुमारणं भंते ! केवड्या वे उपिलरीरा एण्णता ?) हे भदन्त ! असुरकुमारों के वैक्रियशरीर कितने होते हैं ? (गोधमा ! देउब्वियसरीरा दुविहा परणत्ता-तं जहा-बद्धेल्लया य-मुक्ल लया य-तत्थ णं जे ते बद्धल्लया, ते णं अमखिज्जा, अमंखिजाहिं उसर्पिणीओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालो ) हे गौतम ! वैक्रिय शरीर दो प्रकार के कहे गये हैंएक तो बद्ध क्रिपशरीर और दूसरे मुक्त क्रियशरीर इनमें जो बद्ध वैक्रिय शीर हैं, वे अरकुमारों में सामान्यरूप से असंख्यात होते हैं । काल की अपेक्षा इनके बद वैक्रिय शरीर असंख्यात उत्सर्पिणी ગૌતમ અસુરકુમારના ઔદ્યારિક શરીર નારકના દારિક શરીરની જેમ જ હોય છે એટલે કે જેમ વૈકિયશરીરવાળા હેવાથી નારમાં બદ્ધ ઔદારિક શરીર હેતા નથી, તેમજ અમુકુમારોને વૈકિયશરીરશાલી હોવા બદલ તેમના પણ બદ્ધ દારિક શરીર હોતા નથી. પરંતુ જે મુકત ઔદારિક શરીર છે, તે જેમ નારકમાં સામાન્યતઃ અનંત હોય છે, તેમજ અહીં પણ ते मनाय छे. (असुर कुमारणं भंते ! केवइया वेउव्क्यिसरीरा पण्णत्ता ?) के महत! मसुमारेशना पैठिय शश। टस डाय छे ? (गोयमा । वेउ. व्विय सरीरा दुविहा पण्णत्ता-तंजहा बद्धल्लया य मुक्केल्लया य-तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया, ते णं असंखिज्जा, असंखिज्जाहिं उस्सपिणी ओसप्पिणीहिं अवहीरंति काल गौतम ! यसरी प्रारना उवामा माव्यां . એક બદ્ધિવપિ બીજું મુક્તવૈકિય આમાં જે બદ્ધકિય શરીર છે, તે અસુરકુમારેમાં સામાન્ય રૂપથી અસંખ્યાત છે ય છે. કાલની અપેક્ષાથી એમના આ બદ્ધવૈક્રિય શરીરે અસંખ્યાત ઉત્સર્પિણી અને અવસર્પિણી કાળના એક For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy