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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१२ ओधतो बैंक्रियादिशरीरसंख्यानिरूपणम् ३९५ जे ते बद्धेलया ते णं अणंता अणंताहिं उस्सप्पिणी ओसकिणाहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सिद्धेहिं अणंतगुणा सव्वजीवाणं अणंतभागूणा । तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते गं अणंता अणंताहिं उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दवओ सकजीवेहिं अणंतगुणा सव्वजीववग्गस्त अणंतभागे। केवइया भंते ! कम्मयसरीरा पण्णता? गोयमा! कम्मयसरीरा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्धेल्लया य मुकल्लया य। जहा तेयगसरीरा तहा कम्मगसरीरावि भाणियवा॥सू०२१२॥ __छाया-कियन्ति खलु भदन्त ! वैक्रियशरीराणि प्रज्ञतानि ? गौतम । वैक्रियशरीराणि द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च। तत्र खलु यानि तानि बद्धानि तानि खलु असंख्येयानि असंख्येयाभिः उत्सर्पिण्यवसपिणिभिः
अप सूत्रकार ओघ की अपेक्षा वैक्रिय आदि शरीरों की संख्या निरूपित करते हैं-"केवइया णं भंते ! वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता" इत्यादि। ___ शब्दार्थ--(भंते !) हे भदन्त ! (वेउब्वियसरीरा) वैक्रिय शरीर (केवड्याणं पण्णसा) कितने प्रकार के कहे गये है ? (गोयमा) हे गौतम । (उब्वियसरीरा दुविहा पण्णत्ता) वैक्रिय शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। (त जहा) जैसे-(बद्धेल्लया थ मुक्छेल्लपाय) एक बद्ध वैक्रियशरीर और दूसरे मुक्त क्रियशरीर । (तस्थ णं जे ते बद्धेल्लयो तेणं असंखिज्जा) इनमें जो बद्ध वैक्रियशरीर हैं, वे सामान्य से असंख्यात हैं। (असंखि
હવે સૂત્રકાર એાઘની અપેક્ષા વૈક્રિય વગેરે શરીરની સંખ્યા વિ. पित रे छ-" केवइयाणं भंते ! वेउब्वियसरीरा पण्णता?" त्याल
शाय-(भंते !) 3 महत! (वेउव्वियसरीरा) यशरी। (पेपरपाणं पण्णत्ता) an नावामा माया छ ? (गोयमा) 8 गौतम! (वेउब्वियसरीरा दुविहा पण्णता) वैठियशरीर में प्रारना अपामा माया छ. (तंजहा) भ (बद्धेल्लया मुक्केल्लयाय) से प हियशश२ म२ fon भुत यि शरी२ (तत्थ णं जेते बद्धेल्लयाय वेणं असंखिय) मामा वैठिय शरी। छ, त आमा-बथी मण्यात 2. (असंखिजाहिं स्थापिणामो.
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