________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मानुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २१० औदारिकादिशरीरनिरूपणम् ३७७ स्पतिकायिकानामपि एतान्येव त्रीणि शरीराणि भणितव्यानि । वायुकानिकानां भदन्त ! कति शरीराणि प्राप्तानि ? चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि, तपथाऔदारिकं वैक्रियं तैनसं कार्मकम् । द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणां भदन्त ! कति शरीराणि प्राप्तानि ? गौतम ! त्रीणि शरीराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-औदारिक तैनसं कार्मकम् । पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् यथा वायुकायिकानाम् । मनुष्याणां भदन्त ! कति शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्चशरीराणि पज्ञप्तानि, तद्यथा-. वणस्सइकाइयाणऽवि एए चेव तिणि सरीरा भाणियव्या) इसी प्रकार से अप्कायिक, तैजस्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के भी येही तीन शरीर जानना चाहिये। (वाउकाइघाणं भंते ! कइ सरीरा पण्णता) हे भदन्त ! वायुकायिक जीवों के कितने शरीर होते हैं ? (गोयमा!) हे गौतम ! (चत्तारि सरीरा पण्णत्ता) वायुकायिक जीवों के चार शरीर होते हैं । (तं जहा) वे ये हैं-(ओरालिए, वेउन्धिए, तेयए, कम्मए)
औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मक । (वेइंदियतेइंदियचरिदि. यार्ण भंते ! कह सरीरा पण्णता ?) हे भन्दत ! दो इन्द्रियवालों के, तीन इन्द्रियवालों और चार इन्द्रियवाले जीवों के कितने शरीर होते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (तभो सरीरा पण्णत्ता) तीन शरीर होते हैं(तं जहा) वे ये हैं-(ओरालिए, तेयए कम्मए) औदारिक, तैजस और • कार्मक । (पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा वाउकाइयाण) पंचेन्द्रियति. पंचों के वायुकायिक जीवों के जैसे चार शरीर होते हैं। (मणुभाउतेउ वणस्सइकाइयाणऽवि एए चेव तिणि सरीरा भाणियव्वा) मा प्रभारी અપ્રકાયિક, તેજ કાયિક અને વનસપતિકારિક જીવના પણ એજ ત્રણ શરીરે ला . (वाउकाइयाणं भते ! कइ खरीरा पण्णत्ता ) 3 ! वायु४यिवान खi N२ ३य छ ? (गोयमा) 3 गौतम! (पत्तारि सरीरा पण्णत्ता) वायुायिः वानी या२ शरी। डाय छे. (तं जहा) ते प्रभारी छ ओरालिए वेरविए, तेयए, कम्मए.) मोहा४ि, वैजय, तेस भने '. बेइंदियतेइदियचउगिदियाणं भते ! कइ सरीरा पण्णत्ता ?) 3 लात ! मे ઈન્દ્રિયવાળા ત્રણ ઈન્દ્રિયવાળા અને ચાર ઈન્દ્રિયવાળા જીના કેટલા શરીરે सोय छ १ (गोयमा !) 3 गीतम! (तओ सरोरा पण्णता) अY शरीर हाय छ. (तं जहा) मा प्रमाणे छे. (ओरालिए, तेयए कम्मए) श्रीहरिश, तेस भने आम, (पंचेदियतिदिक्खजोणियाण जहा वाउकाइयाणं) पयन्द्रियतिय'. आना पायि सवानी २भ यार शरीरे डाय छे. (मणुस्साणं पुच्छा)
अ०४८
For Private And Personal Use Only