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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सू २०२ समयस्वरूपनिरूपणम् मितिसमागमेन-द्वयादिसमुदायात्मकतन्तूनां सम्यक्संयोगेन एका पटशाटिका वा पट्टशाटिका वा निष्पन्ना भवति । तस्या उपरितने तन्तावच्छिन्ने अधस्तनस्तन्तुर्न छिद्यते । अन्यस्मिन् काले चोपरितनस्तन्तुश्छिद्यते अन्यस्मिन् काले बाधस्तनः । तस्मात् शाटिकाया हस्तमात्रस्फाटनकालः समयो न भवति । एवं वदन्तं प्रज्ञापकंगुरुं नोदकः शिष्यः पृच्छति-यावता कालेन शाटिकाद्वयमध्ये ज्यतरस्याः शाठि. उत्तर-(णो इण्डे समढे) यह अर्थ समर्थित नहीं है-अर्थात् वह समय नहीं है । (कम्हा) क्योंकि (जम्हा संखेज्माण संतूर्ण) संख्यात संतुओं के (समुदयसमिइसमागमेणं) समुदायरूप समिति के सम्यक संयोग से अर्थात् द्वयादिसमुदायानक तंतुओं के विशिष्ट संयोग से (एगा पडसाडिया वा पट्टसाडिया वा निप्पजइ) एक सूतकी शाटिका अथवा रेशम की शाटिका बनती है। (उपरिल्लंमि तंतुम्मि अच्छिणे हिडिल्ले तंतु न छिज्जा ) सो जब तक उसका ऊपर का तंतु नहीं फटेगा, तब तक नीचे का तंतु नहीं फट सकता है। (अण्णम काले उवरिल्ले तंतू छिज्जइ अण्णम्मि काले हिटिल्ले तंतू छिज्जइ) इसलिये यह मानना चाहिये कि ऊपर के तंतु के छिदने का काल दूसरा है और नीचे के तंतु के फटने का काल दूसरा है । (तम्हा से समए न भवइ) इसलिये शाटिका का १ एक हाथ फटने का काल समयरूप नहीं है (एवं वयंतं पण्णवयं चायए एवं बयासी) इस प्रकार कहनेवाले गुरु से पुनः प्रश्न कर्ता शिष्य पूछता है कि (जेणं कालेणं तेणं तुण्णागदारएणं तीसे पडसाडियार वा पट्टसाडियाए वा उचरिल्ले तंतु छिण्णे से समए उत्तर-(णो इणद्वे सम8) मा म समाबत नथी. मे समय नथी (कम्हा) हेम (जम्हा संखेज्जाणं तंतूग) सध्यात त तुमाने (समुदयसमिइ समागमेणं) समुदाय ३५ समितिना सभ्य साथी भेट दयाल समुदायात्म ततुना विशिष्ट साथी (एगे पडसाडिया वा पट्ट साडिया वा निष्काइ) से सूनी शी अथए। २०ी शाट तयार थाय छे. (उरिल्लंमि तंतुम्मि अच्छिणे हिल्लेि तंतु न हिज्जइ) तो न्यो सुधा તેની ઉપર તત (તાર) ફાટશે નહીં, ત્યાં લગી નીચેને તંતુ ફાટશે નહીં (अण्णमि काले उपविल्ले तंतू छिज्जइ अण्णमि काले हिडिल्ले तंतू छिज्जइ) એટલા માટે આ વાત માની લેવી જોઈએ કે ઉપરના તંતુને છેદન કાલ मन्य छे भने नायना ततुना हुन समन्य छे. (तम्हा से समए न भवइ) એટલા માટે શાટિકાને એક હાથ વસ્ત્ર ફાડવાને કાલ સમય રૂપ નથી. (एवं वयंतं पण्णवयं चोयए एवं क्यासी). २॥ प्रमाणे नारा शु३२.३ For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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