SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारसूत्र टीका --'से किं तं' इत्यादि अथ किं तत् अवमानम् ? अवमीयते परिच्छियते यत्तदवमानम् वातादिकं वस्तु, यद्वा-अवमीयते परिच्छिद्यते-निणीयते खातादिमानमनेनेति-अवमानं हस्तदण्डादिकम् । इति कर्मकरणोभयसाधनपक्षेऽत्रावमानशब्दः किं साधन इति शिष्यप्रश्नः। अवमानशब्दस्य उभयसाधनत्वमङ्गीकृत्य प्रथमं कर्मसाधनतावलम्बनेनोत्तरयति-अवमानं-यत्खलु अवमीयते-परिच्छिद्यते तत् खातादिकं बोध्यम् । __ “से किं तं ओमाणे ?" इत्यादि। शब्दार्थ-(से किं तं ओमाणे ?) हे भदन्त ! वह अवमान क्या है ? उत्तर-(जण्णं ओमिज्जइ ओमाणे) जो नापा जाता है वह अव. मान है । (तंजहा-हत्थेण वा दंडेग वा) नापा जाता है हाथ से, अथवा दण्ड से (धणुक्केण वा) अथवा धनुष से (जुगेण वा) अथवा युग से अथवा नालिका से, अथवा अक्ष से अथवा मुसल से। यहां पर अवमान शब्द कर्म और करण इन दोनों साधनों में व्यवहत हुआ है। "अवमीयते यत् तत् अवमानम्" जो प्रमाणित किया जावे-नापा जावे वह अवमान है। इस कर्मसाधन संबन्धी व्युत्पत्ति के अनुसार अवमान शब्द का वाच्यार्थ खातादिक-कूपादिक-वस्तुएँ पड़ती हैं। और जब “अवमीयते अनेन इति अवमानम्" ऐसी अवमान शब्द की व्युत्पत्ति करण साधन पक्ष में की जाती है-तब हस्त दण्डादिक अबमान शब्द के वाच्यार्थ पड़ते हैं ! जय कर्मसाधन पक्ष में अवमान शब्द " से किं त ओमाणे ?" त्याहशहाथ-(से कि ओमाणे ) 3 महत! ते अवमान छ ? उत्तर--(जण्णं ओमिज्जइ ओमाणे) २ भावामा मा छे ते समान छ. (तजहा-हत्थेण वा दंडेण वा) हाय अथवा 43 भावामां आवे छे. (धणुक्केण वा) अथवा धनुषथी (जुगेण वा) अथवा युगथी मथ नलिथी, અથવા અક્ષથી અથવા સાંબેલાથી માપવામાં આવે છે. અહીં અવમાન શબ્દ म भने ४२९१ मा भन्ने साधनामा व्यपाहत ये छे. 'अवमीयते यत् तत् अवमानम् '२ प्रमाणित ४२वामां आवे मायामा माव-ते समान छ આ કર્મ સાધન સંબંધી વ્યુત્પત્તિ મુજબ અવમાન શબ્દને વાચ્યાર્થ-કૃપા विष समन्वो मने ब्यारे 'अवमीयते अनेन इति अवमानम् ' मा જાતની અવમાન શબ્દની વ્યુત્પત્તિકરણ–સાધન પક્ષમાં કરવામાં આવે છે ત્યારે હસ્ત, દંડ વગેરે અવમાન શબ્દના વાચ્યાર્થ હોય છે, જ્યારે કર્મ સાધન For Private And Personal Use Only
SR No.020967
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages928
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy