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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - अनुयोगद्वारसूत्रे रौति मयूरः, कुक्कुटः ऋषभं स्वरम् । हंसो रौति गोन्धारं, मध्यमं च गवेलका (मेषाः)॥४॥अथ कुसुमसंभवे काले, कोकिलाः पञ्चम स्वरम् । षष्ठं च सारसाः क्रौंचाः , निषादं सप्तमं गजाः ॥५॥ सप्तस्वराः अजीवनिश्रिताः प्रज्ञप्ताः तद्यथाषड्ज रौति मृदगो, गोमुखी ऋषभं स्वरं । शंखो रौति गन्धारं, मध्यमं पुनर्झल्लरी॥६॥चतुश्चरणप्रतिष्ठाना, गोधिका पश्चमं स्वरं । आडम्बरो धैवतकं, महामेरीश्च सप्तमम् ॥ सू०१६३ ॥ ना चाहिये । (सरहाणा वियाहिया) इस प्रकार से सात स्वरस्थान व्या. ख्यात किये हैं। (सत्तसरा जीवणिस्सिया पण्णत्ता) सात स्वर जीवनिश्रित कहे गये हैं। (तंजहा) वे इस प्रकार से हैं—(सज्ज रवह मउरो) षड्जस्वर मयूर बोलता है (कुक्कुडो रिसहं सरं) कुक्कुटऋषभस्वर बोलता है ।(हंसो रवइ गंधारं ) हंस गांधार स्वर बोलता है (मज्झिमं च गवेलगा) गवेलक-मेष मध्यम-स्वर बोलते हैं। (अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं सरं) पुष्पोत्पत्तिकाल में कोयल पंचम स्वर बोलती है (छटुं च सारसा कोंचा) छठा धैवत स्वर सारस और क्रौंच पक्षी बोलते हैं। (सत्तमं नेसायं गया) सातयाँ जो निषाद स्वर है उसे गज बोलते है। (सत्त सरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता) सात स्वर अजीवनिश्रित कहे गये हैं-(तं जहा) वे इस प्रकार से हैं-(सज्ज रवह मुयंगो) षड्ज मृदंग बोलता है (गोमुही रिसहं सरं) गोमुखी-वाद्यविशेष-ऋषभ स्वर बोलता है । (संखो गंधारं रवइ) शंख-गांधार स्वर बोलता है।(मल्लरीमज्झिम) झल्लरी मध्यमस्वर बोलता है। (चउचरणपाटाणा गोहिया) (सत्तसरा जीवणिस्पिया पण्णत्ता) सात १२। मिश्रित रुवामा साव्या (तंजहा) ते भा प्रभारी छ-(सज्जं रवइ मठरो) १९०१ २१२ मयू२-मार-मासे छ. (कुक्कुडो रिसहं सरं) ४ ५ ६१२ मा छे. (मज्झिमं य गवेलगा) भव-भष-मध्यम २१२ मा छे (अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं सर) पुण्योत्पत्ति मां-14 यमस्व२ मा छे. (छठंच मारमा कोंचा) छठी धेत २५२ सास भने-यपक्षी विशेष मा छ. (त्तमं नेसायं गया) सातमा निषा १२ हाथी माले छ (सत्तसरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता) सात ५१२। म तश्रित वामां माया छे (तंजहा) ते मा प्रमाणे छसज्ज वह मुयंगो) ५३०५ २१२ भृगमा नीजे छ, (गोमही रिसहं सरं) गेमुभी-बाध विशेषमाथी *पम १२ नीले छे. (संखो गंधारं रखइ) शमभांथा गांधार २१२ नाणे छे. (झल्लरी मज्झिम) आसमांथा मध्यम स्वर नाणे छे. (चउचरणपइद्वाणा गोहिया) यारे ५॥ २॥ भान ५२ भूपामा For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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