SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 732
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुयोगन्द्रका टीका सूत्र १५४ क्षायिकभाव निरूपणम्ं 'उच्चनीच कर्मविमुक्तः' इत्यन्तैः पदैः । एषां व्याख्या पूर्ववद् भावनीया । अन्त रायकर्म हि दानान्तरायादिभेदैः पञ्चविधं बोध्यम् । सम्प्रति तत्क्षय निष्पाि नामानि प्राह- 'क्षीणदानान्तरायः' इत्यारभ्य 'अन्तरायकर्म विमुक्तः' इति । एष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होने पर जो नाम निष्पन्न होते हैं उन्हें कहते हैं । गोत्र कर्म दो प्रकार का हैहै- उच्च गोत्र और नीच गोत्र । संतान क्रम से चले आये हुए जीव के आचरण का नाम गोत्र है । प्रतिष्ठा प्राप्त हो ऐसे कुल में जन्म दिलानेवाला कर्म उच्च गोत्र और शक्ति रहने पर भी प्रतिष्ठा न मिल सके ऐसे कुल में जन्म दाता कर्म, नीच गोत्र कहलाना है । गोत्र कर्म के अभाव होते ही उच्च और नीच दोनों प्रकार का गोत्र नष्ट हो जाता -अतः क्षीणोच्वगोत्र और क्षीण नीचगोत्र ये नाम निष्पन्न होते हैं । ( अगोए निग्गोए खीणगोए ) इन अगोत्र निर्गोत्र क्षीणगोत्र शब्दों की व्याख्या पहिले जैसी ही जाननी चाहिये। अब सूत्रकार अन्तराय कर्म के अभाव में जो नाम निष्पन्न होते हैं उन्हें बताते हैं-दानान्तराय आदि के भेद से अन्तराय कर्म ५ प्रकार का है। इनमें (खीणदाणंतराए, खीणलाभंतराए खीण भोगंतराए, खीणउपभोगंतराए, खीण वीरियंतराए) दानान्तराय के क्षय होने से क्षीण दानान्तराय, ( ( खीण उच्चागोए खीण नीयागोए ) गोत्रम्मना नीचे प्रभा में प्रकार पडे छे- (१) अभ्यगोत्र, (२) नीयगेोत्र में डुगमां जन्म थवाथी प्रतिष्ठा भणे छे, એવા કુળમાં જન્મ અપાવનાર કમને ઉચ્ચગેાત્ર કમ કહે છે શક્તિ હાવા છતાં પશુ–ચેાગ્યતઃ હાવા છતાં પણ પ્રતિષ્ઠા ન મળે એવા કુળમાં જન્મ અપાવનાર કર્મોને નીચ ગોત્રકમ કહે છે ગેાત્રકમના ક્ષય થતાંની સાથે જ ઉચ્ચ અને નીચ, આ ખન્ને પ્રકારના ગેત્રના નાશ થઈ જાય છે તેથી જેના ગાત્રકમ ના नाश था गयो छेत्रा करना “श्रीषोभ्यगोत्र " भने “क्षीगुनीथगोत्र " नाभी निष्पन्न थाय छे. (अगोर, निग्गोए, खीणगोए) वणी सेवा भात्माने " गोत्र ” " निर्गोत्र " अने “ श्रीगोत्र" पशु उडेवामां आवे छे. भा પદોની વ્યાખ્યા માહ' આદિની વ્યાખ્યાને આધારે સમજી શકાય એવી છે. હવે સૂત્રકાર અન્તરાય કના અભાવથી આત્માના જે જે નામે નિષ્પન્ન થાય છે, તેમનુ સ્થન કરે છે— દાનાન્તરાય આદિના ભેદથી અન્તરાયકમ પાંચ પ્રકારના કહ્યા (स्त्रीण दाणंतराए, खीणां तुहाए वीप भगं तुरापु स्त्री भोरांतीवीर ०. यंतराए ) भवना हानान्तराना क्षय थ भवाश्री 'श्रीसुहानान्तराय, For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy