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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 9 www.kobatirth.org मैनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५४ क्षायिक भावनिरूपणम् ७०९ freedaarक्त इति । नारकायुकादिभेदेन आयुष्कर्म चतुर्विधं बोध्यम् । सम्मति तत्क्षयोद्भवानि नामानि प्ररूपयति-क्षीणनैरयिकायुष्कः क्षीणतिर्यग्योनिकायुष्कः, क्षीणमनुष्यायुष्कः क्षीणदेवायुष्कः । एतानि चत्वार्यपि पदानि सुर्गमानि । तथा अनायुकः = अविद्यमानायुष्कः । अविद्यमानायुष्कस्तु तद्भविकायुः निरम ह नामवाला ग्रहण किया गया है। इस प्रकार ( मोहणिज्जकम्म farmers) मोहनीय कर्म से विप्रमुक्त बने हुए जीव के ये क्षीण क्रोध से लेकर क्षीण मोह तक के नाम हैं। अब आयुकर्म के क्षयापेक्ष जो नाम होते हैं, उन्हें सूत्रकार स्पष्ट करते हैं-आयु कर्म चार प्रकार का है- नरक आयु तिर्यगायु, मनुष्य आयु देव आयु सो इनमें से ( खीणreersy, स्वीणतिरिक्खजोणिआउए, खीण मणुस्साउए खीणदेवाre) नरकायुष्क के क्षय होने से क्षीण नरकायुष्क, तिर्यग्योनिक आयुष्क के क्षय होने से क्षीणतिर्यग्योनिकायुष्क, मनुष्य आयुष्क के नष्ट होने से क्षीण मनुष्यायुष्क और देवायुष्क के नष्ट होने से क्षीण देवायुष्क ये नाम होते हैं (अणाउए, नीराउए, खीणाउए ) अनायुष्क, fनरायुष्क और और क्षीणायुष्क ये नाम भी होते हैं तद्भव संबन्धी आयु કરી છે કે જે જીવમાં અપુનાંવિમાહાય (ભવિષ્યમાં ફરી ઉદયમાં ન આવે मेव। अभीड) हाय छे, ते अपने सहीं 'समोह' मने 'निमेड ' नाभत्राणेो ऽह्यो छे. (मोइणिज्ज कम्म विप्यमुक्के) भोडनीय थी सपूतः विभुक्त થયેલા જીવના ક્ષીણુક્રોધથી લઇને ક્ષીણમાહ પન્તનાં ઉપયુક્ત નામા સમજવાં. હવે સૂત્રકાર આયુકમના ક્ષયથી આત્માના જે જે નામા નિષ્પન્ન થાય छे, तेमनु नि३ रे - 66 आयुर्भना यार प्रहार - (१) नरहायु, (२) तिर्यगायु, (3) मनुष्यायु मने (४) हेवायुं. (खीणणेर झ्याउए, खीणविरिक्खजोणि आउए, खीणमणुह्साउए, खीण देवाउए) नरायुष्णुना क्षय था भवाने सीधे व 'क्षीषुनरप्रयुष्टु' અની જાય છે, તિગ્યેાનિક આયુષ્યના ક્ષય થઈ જવાથી જીવ “ક્ષીણતિય - ચેનિકાચુષ્ક” બની જાય છે, મનુષ્ય આયુષ્યના ક્ષય થઈ જવાથી જીવ ક્ષીજીમનુષ્યાયુક '' થઈ જાય છે અને દેવાયુષ્કને ક્ષય થઈ જવાથી જીવ “ ક્ષીણુદેવાયુક” થઇ જાય છે. આ પ્રકારે ચારે ગતિના આયુષ્યના ક્ષય થઈ भवाथी भवना उपर्युक्त यार नाभेो निष्यन्न थाय छे. (अणाउए, निराउए, श्रीणाउए) आयुभना क्षय था भाथी भवनां “ मनायुष्णु,” “निरायुष्टुं " भने “श्रीषायुष्” मा ऋणु नाभेोषाणु निष्यन्न थाय छे. तहूलव संबंधी (ते 66 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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