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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir agartificer टीका सूत्र १५४ क्षायिकभावनिरूपणम् God सर्वथा विना वेदना यस्य स तथा । एतदुपसंहरन्नाह - शुभाशुभवेदनीय कर्मविषमुक्त इति । अथ मोहनीयक्षयापेक्षाणि नामानि प्ररूपयितुमाह- 'खीणको हे' इत्यादि । मोहनीयं द्विविधं भवति - दर्शनमोहनीयं चारित्रमोहनीयं च । तत्र - दर्शनमोहनीयं सम्यक्त्वमिश्र मिध्यात्वभेदात् त्रिविधं भवति । चारित्रमोहनीयं तु क्रोधादिकंपाय हास्यादि नोकषायभेदात् द्विविधं भवति । एतत्क्षये यानि नामानि भवन्ति तान्याह सूत्रकारः - क्षीणक्रोधो पात्रत् क्षीगलोभः । एतानि नामानि सुबोध्यानि । तथाक्षीणप्रेमा - क्षीणं प्रेम मायालो नौ यस्य स तथा - अपगतमायालोभ इत्यर्थः । जाता है, (सुभासु भवेयणिजकम्मविध्यमुक्के) शुभ और अशुभवेदनीय कर्म से विप्रमुक्त हुए उस जीव के ये पूर्वोक्त क्षीण सातादनीय आदि नाम हैं। अब सूत्रकार मोहनीय कर्म के क्षय से जो नाम होते हैं उन्हें कहते हैं (खीण कोहे जाव खीणलोहे) मोहनीय कर्म दो प्रकार का होता है एक दर्शन मोहनीय और दूसरा चारित्र मोहनीय- इनमें मिथ्यात्व सम्यक्त्वमिथ्यात्व और मिश्र के भेद से दर्शन मोहनीय तीन प्रकार का हैतथा चारित्र मोहनीय, क्रोधादिकषाय और हास्यादिक नोकषाय के भेद से दो प्रकार का है - इस दोनों प्रकार के मोहनीय के क्षय होने पर जो नाम होते हैं उन्हें सूत्रकारने क्षीण क्रोध यावत् क्षीण लोभ इन शब्दों द्वारा प्रकट किया है। ये नाम सुबोध्य हैं। (खीणपेज्जे) प्रेम शब्द (सुभासुभवेयणिज्ज कम्मविष्पमुक्के) शुभ भने अशुभ वेदनीय उभथी विभुक्त થયેલા તે જીવના ક્ષીણસાતાવેદનીય આદિ પૂક્તિ નામા સમજવાં હવે સૂત્રકાર માહનીય કર્મના ક્ષયથી આત્માનાં જે જે નામે નિષ્પન્ન થાય છે તેમનું નિરૂપણ કરે છે— (खीण कोहे जाव खीण लोहे) भोडनीय अर्मना नीचे प्रभा में अहार पडे छे-(१) दर्शनमोडनीय भने (२) चारित्र मोडनीय मिथ्याल, सभ्यत्व મિથ્યાત્વ અને મિશ્રના ભેદથી દશનમાહનીય કર્મ ત્રણ પ્રકારના કહ્યાં છે. ાષાદિક કષાય અને હાસ્યાદિક નાકષાયના ભેદથી ચારિત્ર માહનીય ક્રમ એ પ્રકારનુ કહ્યું છે. બન્ને પ્રકારના માહનીય ના આત્મામાંથી ક્ષય થઈ જવાથી આત્માનાં નીચેનાં નામે નિષ્પન્ન થાય છે ક્ષીશુક્રોધ, ક્ષીણુમાન, શ્રીગુમાયા અને શ્રીજીલાભ આ નામના અર્થ સુગમ होवाथी तेमना विषे बघु स्पष्टता उरवानी ४३२ नथी. (खीण पेब्जे) प्रेभ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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