SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 711
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૬૪ अनुयोगद्वारसूत्रे शिष्यः पृच्छति - अथ कोऽसौ औपशमिकः ? इति । उत्तरयति - औषशमिकःउपशोपशमनिष्पन्नभेदेन द्विविधः प्रज्ञप्तः । तत्र - मोहनीयस्य कर्मण उपशम एव उपशम इत्युच्यते । 'णं' इति वाक्यालङ्कारे । अर्थ मनो भेदोऽष्टाविंशतिविधस्य मोहनीयस्यैव कर्मण उपशमश्रेण्यां द्रष्टव्यः, 'मोहस्सेवोवसमो' (मोहस्यैवोपशमः) इति वचनात् । अथ द्वितीयं भेदमाह-अप कोऽसौ उपशमनिष्पन्नः ? इति प्रश्नः । उत्तरयति-उपशमनिष्पन्न उपशान्तको वाद्युपशान्तकषायछद्मस्थवीतरागान्तो हे भदन्त ! (से किं तं उवसमिए ?) वह औपशमिकभाव क्या है ? (उसमिए दुविहे पण ते). उत्तर- औपशमिक भाव दो प्रकार का कहा गया है। (तंजहा) उसके वे दो प्रकार ये हैं - ( उवसमे य उवसमनिष्कपणे य) एक उपशम और दूसरा उपशम निष्पन्न है । (से किं तं उवसमे ?) हे भदन्त ! वह उपशम क्या है ? उत्तर- ( उसमे मोहणिज्जस्स कम्मस्स उवसमेणं) अट्ठाईस प्रकार के समस्त मोहनीय कर्मका जो उपशम है वही उपशम है। यह उपशन ८ वे ९ वें १० वें ११ वें गुणस्थान रूप उपशमश्रेणी में होता है । (से तं उवसमे ) इस प्रकार यह उपशम है । (से किं तं उवसमनिष्oणे ?) हे भदन्त ! वह उपशम निष्पन्न क्या है ? उत्तर- ( उपसमनिष्कण्णे अणेगविहे पण्णसे) उपशम निष्पन्न शब्दार्थ - (से किं तं उत्रसमिए १) हे भगवन् । ते औपशभिम्भावनु સ્વરૂપ કેવું કહ્યું ? उत्तर - ( समिए दुविहे पण्णत्ते) मौशम भाव मे प्राश्नो उद्योछे (तंजा) ते प्रामा प्रभा छे - ( उसमे य उबसम निष्कण्णे य) (1) उपभ भने (२) उपशमनिष्यन्न प्रश्न - (से कि त उसमे ? ) डे अगवन् ! ते उपशमनुं स्त्र३५ ठेवु छे ? હૈ उत्तर- (उसमे मोहणिज्जस्स कम्मस्स उत्रसमेणं) २८ प्रारना સમસ્ત માહનીય કમના ઉપશમને જ અહી' ઉપશમ ભાવ કહેવામાં આવ્યે છે. આડ, નવ, દસ અને અગિયારમાં ગુણસ્થાન રૂપ ઉપશમ શ્રેણીમાં આ ઉપशभ लवना सद्दूभाव र छे (सेत उसमे ) या प्रास्तु' उपशमनु' स्व३य होय छे. प्रश्न - (से किं तं उवसम निष्कण्णे १) डे लगवन् ! भोपशमिड लावना ખીજા ભેક રૂપ ઉપશમ નિષ્પન્નનું સ્વરૂપ કેવું उत्तर- ( उवसमनिष्कण्णे अणेगविहे पण्णत्ते) उपशम निष्यन्न सोपशमिठ છે ? For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy