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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४९ चतुर्नामनिरूपणम् - टीका-' से किं तं' इत्यादि शिष्यः पृच्छति-अथ किंतचतुर्नाम ? इति उत्तरयति-चतुर्नाम-चतुष्पकार नाम-चतुर्नाम, तद्धि चतुर्विधं प्रज्ञप्तम् । चतुर्विधत्वमेवाह - आगमेन, लोपेन, प्रकृत्य विकारेण चेति आगमेनेत्यादिषु सर्व 'निष्पन्न-मित्यध्याहार्यम् । तत्र-आर मेन निष्पन्नम्-'वकं, वयंसे, अइमुंतर' चक्रं, वयस्यः, अतिमुक्तकः, अत्र पाक आगमरूपोऽनुस्वारः, "वक्रादावन्तः” (८.१।२६) तथा लोपेन निष्पन्नं नाम अब सूत्रकार चार प्रकार के नाम की प्ररूपणा करते हैं"से कि तं च उणामे" इत्यादि। शब्दार्थ-(से किं तं च उणामे) हे भदन्त ! वह चतुर्नाम क्या है। उत्तर-(चउणामे चउब्धिहे पणत्त) चतुर्नाम-चार प्रकार व मज्ञप्त हुआ है । (तं जहा) जैसे (आगमेण, लोवेणं पपईए, विगारेणं एक आगम निष्पन्न नाम, दूसरा लोपनिष्पन्न नाम तीसरा प्रक निष्पन्न नाम और चौथा विकार निष्पन्न नाम । (से किं तं आगमेण हे भदंत ! आगम निष्पन्न नाम क्या है ? उत्तर-(आगमेणं वकं वयंसे, अहमुंतए) आगमनिष्पन्न ना वक्र वयस्थ और अतिमुक्तक हैं । (से तं आगमेणं) इस प्रकार ये स आगम से निष्पन्न नाम हैं। (से किं तं लोवेणं) हे भदन्त ! लोप निष्प नाम क्या है ? હવે સૂત્રકાર ચતુર્નામની પ્રરૂપણ કરે છે– “से किं तं चउगामे" त्याहि शहा-(से किं तं चउणामे) . मान्! नामन यायाले ३१ यतुनाभनु ९१३५ पु छ १ । उत्तर-(चउणामे चउविहे पण्णत्ते) यतु म या२ प्रा२नु छ(तंजहा) ते या२ ५४२नीय प्रमाणे छ-(आगमेण, लोवेणं, पयईए, विगारेणं (१) भागमनिष्पन्न नाम, (२) पनि०५-न नाम, (3) प्रतिनि०५-न नाम (४) विनि -५-न नाम.. प्रश्न-से कि तं आगमेणं) भगवन् ! रामनिन नाम न छ। उत्तर-(आगमेणं वंक, वयंसे, अइ मुंतर) १४, १५२५ भने मतिभुत, म ५ो सामान०पन्न नाम। छ. (से तं आगमेणं) मा ४२i मामनि०५. નામો હોય છે . ५-(से किं तं लोवेणं) मन् ! पनिष्पन्न नाम जय छ । अ० ८५ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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