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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - अनुयोगद्वारसूत्रे सोऽपि पठयते। अयं रसो हि स्तम्भिताहारबन्धविध्वंसादिकर्ता भवति । अयं रसो दि.मधुरादिरससंसर्गजत्वात्तदमिन्तत्वेन विवश्यते । यतो. लवणरसयोगादेवान्येऽपि रसाः स्वादीयस्त्वं भजन्ते, अतस्तिक्तादिषु पञ्चसु रसेषु लवणरसस्यान्तर्भावः, अत एव न तस्य पृथगुपादानम् । प्रकृतमुपसंहरबाह-तदेतदूसनामेति। अथ गुणनाम्नश्चतुर्थभेदं जिज्ञासितुकामः पृच्छति-अथ किं तत् स्पर्शनाम ? इति । उत्तरयतिसपनाम-स्पृश्यते त्वगिन्द्रियेणावबुध्यते इति स्पर्शः, तस्य नाम स्पर्शनाम । तदि अष्टविधम् अष्टसंख्यकं बोध्यम् । अष्ट विधत्वमेवाह-तद्यथा-कर्कश स्पर्शनामएक-एक स्वतंत्र रस कहा गया है। यह रस स्तंभित आहार आदि का विध्वंस का होता है आहार वधक एवं मलबद्रता नाशक होता है। यह रस मधुर आदि रस के संसर्ग से उत्पन्न होने के कारण उनसे-अभिनही माना गया है। क्यों कि लवण रस के भोग से ही अन्य दूसरे रस स्वादिष्ट लगते है। इसलिये तिक्तादि पांच रसों में ही लवण रस का अन्तर्भाव हो जाता है। इसलिये इस रस का स्वतंत्र रूप से सूत्रकार ने कथन नहीं किया है। यह अर्थ "से कितं गंधनामे" यहां से लेकर" "महुररसणामे" यहां तक के पाठ का किया है। (से तं रसणामे) इस प्रकार यह रस माम है। (से किं तं फासणामे) हे भदन्त ! गुणनाम का जो चतुर्थ भेद स्पर्श नाम है वह क्या है? उत्तर--(फासणामे अट्टविहे पण्णत्ते) स्पर्श नाम आठ प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। स्पर्शन इन्द्रिय से जो जाना जाता है वह स्पर्श है। રૂપે ગણાવે છે. સિંધાલુણ, નમક, આદિમાં આ રસને સદ્ભાવ હોય છે. આ રસ તંભિત આહાર આદિને વિવંસ કરવાવાળા હોય છે. આહારવર્ધક અને બંધકોશને નાશક હોય છે. આ રસ મધુર આદિ રસના સંસર્ગથી ઉત્પન્ન થતું હોવાને કારણે, તે રસેથી અભિન્ન જ ગણીને અહીં તેને સ્વતંત્ર પ્રકાર રૂપે ગણવામાં આવેલ નથી કારણ કે લવણરસના ચેગથી જ અન્ય રસે સ્વાદિષ્ટ લાગે છે. તેથી તિકતાદિ પાંચે રસમાં લવણરસને સમાવેશ થઈ જાય છે. તેથી જ સૂત્રકારે આ રસનું स्वतत्र ३१ ४थन यु नथी "से कि त गंधनामे" या सूत्रथी धन "महुररसणामे" मा सूत्र पय-तना सूत्रानो मापा ५२ ५४८ ४२वामा माया छे. (से त रमणामे) 40 प्रा२नु २सनामनु १३५ समा. . .. श्र-(से कित फासणामे १) भगवन् ! - अनामना योथा लेह ३५ २ १५शनाम छे, तनु २१३५ ३ छ ? उत्तर-(फासणामे अदविहे पगत्ते) १५ नाम 243 प्रा२नु प्रशस यु . સ્પર્શેન્દ્રિયની મદદથી જે અનુભવ થાય છે, તેનું નામ સ્પર્શ છે For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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