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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १२० औपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वनिरूपणम् ५१७ पच्छाणुपुव्वी ? पच्छाणुपुत्री उडलोए तिरिएलोए अहोलोए । से तं पच्छाणुपुव्वी से किं तं अणाणुपुन्नी ? अणाणुपुवी एयाए चैव एगाइयाए एगुत्तरियाए तिगच्छगया ए सेढीए अन्नमन्नभासो दुरूवूणो । से तं अणाणुपुवी ॥सू० १२०॥ छाया - अथ का सा औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी ? औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तथा पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । अथ का सा पूर्वानुपूर्वी पूर्वानुपूर्वी अधोलोकः, तिर्यग्लोकः ऊर्ध्वलोकः । सैषा पूर्वानुपूर्वी । अथ का इस प्रकार अनौपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी का कथन करके अब सूत्रकार औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का कथन करते हैं"से किं तं ओवणिहिया" इत्यादि । शब्दार्थ (से कि तं ओवणिहिया खेत्ताणुपुब्बी १) हे भदन्त ! संग्रहनय मान्य औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? उत्तर - ( वणिहिया खेप्ताणुपुच्ची तिविहा पण्णत्ता) औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है - (तं जहां) वे उसके प्रकार ये हैं - ( पुत्रवाणुपुत्री, पच्छाणुपुच्ची अणाणुपुत्री) १ पूर्वानुपूर्वी २ पश्चानुपूर्वी (३) अनानुपूर्वी (से किं तं पुव्वाणुपुच्ची) पूर्वानुपूर्वी क्या है ? उत्तर- (पुव्वाणुपुच्ची) पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार से है- (अहो लोए, तिरियलोए, उडूलोए) अधोलोक तिर्यग्लोक ऊर्ध्वलोक । ( से तं पुत्रवणुgoat) यह पूर्वानुपूर्वी है । (से किं तं पच्छाणुपु०वी) पश्चानुपूर्वी क्या है ? આ પ્રમાણે અનૌપનિષિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીનું કથન કરીને હવે સૂત્રકાર योपनिधिडी क्षेत्रानुपूर्वी नुं उथन उरे छे – “से किं तं ओवणिहिया" इत्याह शब्दार्थ - (से किं तं ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी १) हे भगवन् ! सौंग्रहનયમાન્ય ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વી નું સ્વરૂપ કેવુ છે ? उत्तर- (ओणिहिया खाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता) भोपनिधिडी क्षेत्रानुपूर्वी ऋणु प्रहारनी उही छे. (तंजहा) ते अशरी नीचे प्रमाये छे- (पुव्त्राणुपुबी पछाणुपुत्री, अणाणुपुब्वी) (१) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चानुपूर्वी (3) अनानुपूर्वी प्रश्न - ( से किं तं पुत्र्वाणुपुत्री) पूर्वानुपूर्वी मेटले शु? Gur-(genggōft) yalgydi'g eazy 24 us12g D-(erg181q, fafcudig, sjalg) màıdık, fìu°3âïs »A §âqaÀiš, (À á gǝalygōáî) મા ક્રમે કહેલું તેનું નામ પૂર્વાનુપૂર્વી છે. For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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