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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ११९ अनौपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वीनिरूपणम् ५१५ एवंयथा द्रव्यानुपूर्व्याः संग्रहस्य तथा भणितव्यं यावत् सैषा संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्त्तनता । एतस्याः खञ्च संग्रहरूप भङ्गसमुत्कीर्त्तनतायाः किं प्रयोजनम् ? एतया खलु संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्त्तनतया संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता क्रियते । अथ काऽसौ संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता - त्रिपदेशाव गाड ? पुण्बी, अणाणुपुत्रीय एवं जहा दव्याणुपुब्बीए संगहस्स तहा भाणियव्वे जाब से तं संगहस्स भंगसमुक्किन्तणया) अथवा आनुपूर्वी है अनानुपूर्वी है इस प्रकार जिस रीति से द्रव्यानुपूर्वी के प्रकरण में संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप कहा गया है, उसी प्रकार से इस क्षेत्रानुपूर्वी में भी संग्रनयमोन्य अंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप जानना चाहिये । यह स्त्ररूप कथन का संग्रह " से तं संगहरूस भंगसमुक्कि तणया" इसपाठ तक करना चाहिये। (एयाएणं संगहस्स भंगसमुक्कितणयाए कि पओयणं ? कज्जइ) इस संग्रहनय मान्य भगसमुतकीर्त - नता को क्या प्रयोजन है ? उत्तर- (एयाएं संगहस्स भगसमुक्कित्तणयाए संगहस्स भंगो वदंसणया कज्जइ) इस संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्तनता से संग्रहनय मान्य भंगोपदर्शनता की जाती है। (से किं तं संगहस्स भंगोवदंसया ? ) हे भदन्त ! संग्रहनय मान्य वह भंगोपदर्शनता क्या है ? Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" अणुपुवी य, एवं जहा दव्वाणुपुव्वीए संगहरस तहा भाणियव्वं जाव से तं संगहस्व भंग मुक्त्तिणया) अथवा "मानुपूर्वी छे, अनानुपूर्वी छे ઈત્યાદિ જે પ્રકારતું કથન દ્રવ્યાનુપૂર્વીના પ્રકરણમાં સંગ્રહનયસંમત ભગસમુત્કીતનતા વિષયમાં કરવામાં આવ્યુ છે એજ પ્રકારનુ` કથન આ ક્ષેત્રાનુ પૂર્વમાં પણ સગ્રહનયમાન્યભંગસમુત્કીનતાના વિષયમાં પશુ સમજવું જોઇએ આ કથન से तं संगहरु भंगसमुक्कित्तणया આ સૂત્રપાઠ પત ४२ हाये. 66 " प्रश्न- (एयाएण संगहरु मंगसमुत्तिणयाए कि पओयणं ?) मा सग्रहनઅમાન્ય ભંગસમુત્કીત નતાનુ પ્રયાજન શું છે ? उत्तर- (एयाएणं संगहस्स अंगसमुक्कित्तणयाए संगहस्स भंगोवदंसणया યુગર). આ સંગ્રહનયમાન્ય ભગસમુત્કીનતા વડે સગ્રહનયમાન્ય ભગાપદરાનતા કરવામાં આવે છે. For Private and Personal Use Only अश्न - (से किं तं संगइरल भंगोवदंसणया १) डे भगवन् ! सनयस भत તે ભગાપદ'નતાનું સ્વરૂપ કેવું છે ?
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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