SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २५ नोआगम नावावर कनिरूपणम् འ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६५ छाया -- अथ किं तद् नोआगमता भावावश्यकम् ? नो आगनतो भावावश्यकं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - लौकिकं कुप्रवचनिकं लोकोत्तरिकम् ।। ० २५ ।। टीका -- 'से किं तं इत्यादि । व्याख्या निगदसिद्धा | | ० २५ || लौकिक भावाश्यत्र माह- मूलम् - से किं तं लोइयं भावावस्तयं ? लोइयं भावावस्तयं good भार अवरहे रामायणं । मे तं लोइयं भावावस्सयं । सू०२६ । अब सूत्रकार भावावश्यक का द्वितीय भेद जो नोआगमभावावश्यक है। उसका निरूपण करते हैं - " से किं तं नोआगमओ" इत्यादि । ॥सूत्र २५ ।। शब्दार्थ - ( से) शिष्य पूछता है कि हे भदंत । नोआगम की अपेक्षा लेकर भावाश्क का क्या स्वरूप है ? उत्तर- (नाआगमओ भावावरसयं तिविहं पण्णत्त ) ना आगम को आश्रित करके भाव तीन प्रकार का कहा हुआ है । ( त जहा ) जैसे - ( लोइयं) लौकिक ( कुप्पावणि) कुप्रावचनिक और (लोगुत्तरियं ) लोकोत्तरिक । इस प्रकार जानना चाहिये । उस व्याख्या में द्रव्यावश्यक की जगह भारावश्यक शब्द का प्रयोग करना चाहिये | ॥ २५॥ अब सूत्रकार लौकिक भावावश्यक का वर्णन करते हैं"से कि त लोइयं" इत्यादि || मूत्र २६ ॥ ( ભાવાવણ્યકને જે ના આગમ ભાષાવશ્યક’ નામના બીજો ભેદ છે તેનુ સૂત્ર २ हवे नि३ रे छे - " से किं तं नो आगाओ" इत्याहि शब्दार्थ - (से) शिष्य गुरुते येवो प्रश्न पूछे ! डे लगवन् ! नो भागમની અપેક્ષાએ જે ભાવાવશ્યક કહ્યો છે તે ભાવાવણ્યકતુ એટલે કે ના ભાવાવણ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આગમ उत्तर- (नागमओ भावावस्तयं तिविहं पण्णत्त) नायागमने माश्रित उरीने लावावश्यता त्र प्रहार छे. (तंजहा) ते ऋणु प्रहारो नीचे प्रमाणे छे(लाइयं) (१) सौ8ि ( कुप्पावयणियं) (२) कुप्रावयनि गने ( 3 ) लोगु-) तरियं ) बोअत्तरिया पहोनी व्याच्या द्रव्यावश्यउनी नेवी ४ समभवी लेहो, પરન્તુ તે વ્યાખ્યામાં દ્રાવણ્યકની જગ્યાએ ‘ભાવાવણ્યક' પદના ઉપયાગ કરવા हाये ॥ सू. २५ ॥ હવે સૂત્રકાર લૌકિક ભાવાવણ્યકનું નિરૂપણ કરે છે— " से किं तं लाइयं" इत्यादि For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy