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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अनुयोगचन्द्रिका टीका-पू. १६ नोआगमतो द्रव्यावश्यनिरूपणम् ११७ वश्यकं त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यकम्, भव्यशरीरद्रव्यावश्याम्, ज्ञायकशरीरभव्यशरीव्यतिरिक्तं द्रव्यावश्यकम् ॥सू० १६॥ टीका-'से किं तं' इत्यादि-- अथ किं तद् नो आगमतो द्रव्यावश्यकम् ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति'नोआगमओ दवावस्सयं तिविहं पणतं' इत्यादि । नो आगमतो द्रव्यावश्यक त्रिविध प्रज्ञप्तम् । अत्र नो शब्दः सर्वथा प्रतिषेधे देशतः प्रतिषेवेऽपि च वर्तते। तथा च सर्वथा आगमाभावमाश्रित्य द्रःयावश्यकं, तथा देशतः आगमाभावमानित्य द्रव्यावश्यकं च नोआगमतो द्रव्यावश्यकमिति । तत् त्रिविधं प्रज्ञप्तं-तीर्थ करैः प्ररूपितमित्यर्थः। (१) ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यकं, (२) भव्यशरीरदव्यावश्यकम्.(३) ज्ञायकशरीरभ यशरीरन्यतिरिक्तद्रव्यावश्यकंचेति । तत्र-ज्ञानवानिति ज्ञायकः, शीर्य ते को आश्रित कर के द्रव्यावश्यक का क्या स्वरूप है ? उत्तर-(नोआगमओ दव्यावस्सयं तिविहं पण्णत्त)नोआगम की अपेक्षा करके द्रव्यावश्यक तीन प्रकार का प्रज्ञाप्त हुआ है। (तंजहा) उसके वे तीन प्रकार ये हैं-(जाणयसरीरदव्यावस्सयं, भवियसरीरदव्यावरसय, जाणयसरीरभवियसरीरवरित दव्वावग्सयं) (१)ज्ञायक शरीर द्रव्यावश्यक (२)भन्या शरीरद्रव्यावश्य:, और ज्ञाय के शरीरभव्य शरीरव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक । नो शब्द सर्वथा प्रतिषेध में और किञ्चित् प्रतिषेध में भी आता है। नो आगमद्रव्यावश्यक में नी शब्द इन्हीं दोनों अर्थों में व्यवहृत हुआ है। इस तरह आगम के सर्वथा अभाव की और आगम के एकदेश अभाव को लेकर द्रव्यावश्यक वनता है। यह नो आगम द्रव्यावश्यक ज्ञायक शरीर आदि के मेद से ३ प्रकार का है। जो. आगमशास्त्र को जान चुना है ऐसे ज्ञायक का निर्जीव शरीर नोआगम उत्तर-(नोआगमओ दवावस्सय तिविहं पण्णत) ना मानी अपेक्षाद्र०यावश्यना न २ 3 छे. (तंजहा) a प्र नीय प्रभारी समाया.... (जाणयसरीरदब्वावस्सयं, भवियसरीरदबावरसयं, जाणयसरीरमवियसरीरवइरित दावस्सय) (१) शायरी द्र०यावश्य४. (२) १०यशद्र०या) વશ્યક અને જ્ઞાયક શરીર ભવ્ય શરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્યાવશ્યક. , , , , - -"नो" श६ सय निवेध या निधना अभी:५५AVE . छ. "नोमागम, द्रव्यापश्यमा" रे नी' २५६ मा०यो छ । उपर्यु तमन्न' અર્થમાં વપરાય છે. આ રીતે આગમન સર્વથા અભાવને અને આગમના એક દેશતઃ અભાવને લઈને દ્રવ્યાવશ્યક બને છે. આ આગમવ્યાવશ્યક જ્ઞાચ્છ શરીર આદિના ભેદથી ત્રણ પ્રકારને કહો. છે, જે આગમનું જાણી ચુકી છે એવા સાયકનું નિર્જીવ શરીર ને આગમદ્રવ્યવાશ્યક છે. આગામી કાળમાં જે જીવ વિવક્ષિત For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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