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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जा तंपि तेरसूणं, चउसइमाइ तो दुहाणीए । जाव चउत्थं तो आयंबिलाइ जा पोरिसि नमो वा ॥ ३१ ॥ जं सक्कइ तं हियए, धरित्तु पारित्तु पेहए पुत्तिं । दाउं वंदणमसढो, तं चिय पच्चक्खए विहिणा ॥ ३२ ॥ इच्छामो अणुसलुि ति भणिय उवविसिय पढइ तिण्णि थुइ । मिउसद्देणं सक्कत्थयाइतो चेइए वंदे ॥ ३३॥ अह पक्खियं चउद्दसिदिणम्मि पुव्वं व तत्थ देवसियं । सुत्तंतं पडिक्कमिउं तो सम्ममिमं कमं कुणई ॥ ३४॥ मुहपोत्ती वंदणयं संबुद्धा-खामणं तहा लोए । वंदण पत्तेय खामणाणि वंदणयमह सुत्तं च ॥ ३५ ॥ सुत्तं अब्भुट्ठाणं उस्सग्गो पोत्ति वंदणं तह य । पज्जंति य खामणयं तह चउरो थोभवंदणयं || ३६ ॥ पुव्वविहिणेव सव्वं, देवसियं वंदणाइ तो कुणइ। सिज्जसुरी उस्सग्गे, भेओ संतित्थय पढणे य एवं चिय चउमासे, वरिसे य जहक्कम विही णेओ। पक्ख-चउमास-रिसेसु नवरि नामम्मि नाणत्तं तह उस्सगुज्जोया बारसवीसा समंगलगचत्ता । संबुद्धा खामणं ति-पण-सत्त-साहूण जहसंखं ॥ ३९ ॥ ॥ ३७॥ ॥ ३८॥ पू.आ.श्री जिनप्रभसूरिकृता ॥ मालोपबृहंणा ॥ सावज्जकज्जवज्जणनिट्ठरणुट्ठाणविहिविहाणेण । दुक्करउवहाणेणं विज्जा इव सिज्झए माला ॥ १॥ ५७ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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