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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ ॥ ३५ ॥ || ३६ ॥ ॥ ३७॥ ॥ ३८ ॥ एवं च कीरमाणे होही तुह भुवणभूसणा कित्ती । एत्तो चेव य चंदं पडुच्च केणावि जं भणियं गयणंगणपरिसक्कणखंडणदुक्खाइं सहसु अणवरयं । न सुहेण हरिणलंछण ! कीरइ जयपायडो अप्पा अविणीए सासिंतो कारिमकोवे वि मा हु मुंचिज्जा। भद्द ! परिणामसुद्धिं रहस्समेसा हि सव्वत्थ उप्पाइयपीडाण वि परिणामवसेण गइविसेसो जं। जह गोव-खरय-सिद्धत्थयाण वीरं समासज्ज अइतिक्खो खेयकरो होहिसि परिभवपयं अइमिऊ य। परिवारम्मि सुंदर ! मज्झत्थो तेण होज्ज तुमं स-परावायनिमित्तं संभवइ जहा असीअ परिवारो। एवं पहू वि ता तयणवत्तणाए जएज्ज तुमं अणुवत्तणाइ सेहा पायं पावंति जोग्गयं परमं । रयणं पि गुणोक्करिसं पावइ परिकम्मणगुणेण इत्थ उ पमायखलिया पुव्वब्भासेण कस्स व न होति । जो तेऽवणेइ सम्मं गुरुत्तणं तस्स सहलं ति को नाम सारही णं स होज्ज जो भद्दवाइणो दमए । दुढे वि हु जो आसे दमेइ तं सारहिं बिंति को नाम भणिइकुसलो वि इत्थ अच्चब्भुयप्पभावम्मि। गणहरपए पइपयं सव्वुवएसे खमो वुत्तुं परमित्तियं भणामो जायइ जेणुण्णई पवयणस्स । तं तं विचितिऊणं तुमए सयमेव कायव्वं सीसाणुसासणे वि हु पारद्धे अह इमं तुमं पि खणं। वण्णिज्जंतं जइपहु ! पहिट्ठचित्तो निसामेहि ॥ ३९ ॥ ॥ ४०॥ ॥ ४१ ।। 11 ४२ || ॥४३॥ ॥ ४४ ॥ 30 For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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