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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणुरोहो दक्खिण्णं लग्गणओ पडिहुओ दरं अद्धं । हीरइ जं आणंदे वत्थं तं पुण्णवत्तं त्ति ॥ २१२ ॥ संजविअं संगोविअं अणुहूअं माणिअं सुई वेओ। पासायस्सोवरि जा साला सा चंदसाल त्ति ।। २१३॥ निब्भरं अइसयभरिअं पत्थरिअं अत्थुअं छडा छंटा । रोसेणं उण्हिक्कं वयणं जं तं थुडंकिअयं ।। २१४ ॥ साहिज्जं अत्थारो हिरिबेरो वालओ भिसी सारी । जं पिच्छइ तं वंछइ जो सो जंपिच्छओ भणिओ ॥ २१५ ॥ पच्चाएसं दिटुंतं ओज्झरं निज्झरं दुहं दुक्खं । कयगंठि थणोवरि विरइअंसुअं गिंधुअं जाण ॥ २१६ ॥ पडिमा पडिबिंबं कज्जवो कयवरो विआणं उल्लोओ। उभओ वासुत्थल्लणं उच्चत्तवरत्तयं भणिअं ॥ २१७ ॥ रिक्कं रित्तं पत्ताई भायणाई सिरिद्दहो पविआ। मुहविक्कोणो छिच्चोल्लउ त्ति जो निंदणत्थम्मि ॥ २१८ ॥ दिट्ठि विहाविअं मिढिआओ अविलाओ सेरिही महिसी। परिपासउ त्ति छेत्ते जो पुरिसो सुअइ राईए ॥ २१९ ॥ घुसिणं कुंकुमं उक्का चुडुली खाणी खणी कुढं कूवं । उच्छंटउ त्ति तुरिअयरचोरिआहत्थवावारो ॥ २२० ॥ बद्धं संगिल्लं तणुरुहाई रोमाई चित्तओ दीवी । हुत्तवयं जस्संते सुव्वइ तं तस्स सुमुह त्ति ।। २२१ ॥ कूलं तीरं असोओ कंकेल्ली रंजणो अलिंजरओ। खुण्णं च मढिअं ऊढा परिणीआ मिहुणयं जुअलं ॥ २२२॥ उअ पिच्छ धरइ जीवइ-दुच्चं दूअत्तणं दिसा आसा। संखायं थीणं संदणो रहो-सारही सूओ ॥२२३ ॥ 3१८ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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