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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १२॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ ॥ १७॥ तं पक्खियचुण्णीए महानीसीहे दसासुयक्खंधे । भणियं चउद्दसीए समराइच्चे इ फुडमेव संवच्छरियं जह अट्ठमेण चउम्मासियं च छद्रेण । तह पक्खियं चउत्थेण निव्वियारं सुआएसो संवच्छरियं चउम्मासियं च सुत्तम्मि जह विणिदिटुं। चेईयजईण सव्वेसि वंदणे पक्खियं पि तहा आवस्सयचुण्णीए सव्वाणि वि चेईयाणि साहू अ। अट्ठमीचउद्दसीसु जं भणियं वंदियव्वत्ति चेइयजइवंदण तवदिणम्मि पडिक्कमणत्थओ एइ । न य पुण सुत्ते दीसइ जह पंचदसीइ पडिक्कमणं पाओसियकालेणं अणागएसु च चउसु दिवसेसुं। पज्जोसवणाकप्पम्मि कड्डिए सव्वसाहूणं कप्पइ पज्जोसवणा निसीहमाईसु जं फुडं भणियं । तं कह पंचदसीए जुज्जिज्जा पक्खपडिक्कमणे पंचमीपज्जोसवणे पंचदसीए वि पक्खपडिक्कमणे । अह अज्जकालगाओ परओ जुज्जिज्ज एवं पि एवं पि पज्जुसवणा चउत्थीदिवसम्मि तेण विहियत्ति । पत्ता जहा पमाणं किं नो तह पक्खपडिक्कमणं नूणं चउद्दसीए तमासि तस्सऽण्णहा कह घडिज्जा। पज्जोसवणाकप्पस्स कढणं दिणचउक्केण चउम्मासगपडिक्कमणं सुत्ते अह पुण्णिमाइ निद्दिढ़। ता तयऽणुसाराओ पक्खियं जुज्जिज्ज पक्खंते छटेण चउम्मासिगमओ य तं पुण्णिमाएव घडिज्जा । एयं पुणोववासेण वण्णिओ चउद्दसीए सो ॥ १८ ॥ ॥२०॥ ॥ २१॥ || २२ ॥ ॥ २३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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